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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० - ज्ञाताधर्मकथास्त्र पडिगया। तएणं सा धारिणी देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचणभिंगारमुह विणिग्गयसीयल जलविमलधाराए परिसिंचमाणा निव्वा. वियगायलट उक्खेवणतालविंट वीयणगजणियवाएणं सफुसिएणं अंते उरपरिजणेणं आसासिया समाणी मुत्तावलि सन्निगासपवडंस अंसुधारोहि सिंचमाणां पओहरे कलुणविमण दीणारोयमाणीकंदमाणी तिप्पमाणीसोयमाणी विलवमाणी मेहं कुमारं एवं वयासी।सू० २७॥ टीका-'तपणं सा' इत्यादि । ततः खलु सा धारिणी देवी 'तमणिः ताम् अनिष्टाम् इष्टविरहकारिकाम्, 'अकंतं' अशान्ताम् अवांच्छिताम्, 'अप्पियं' अप्रियां-दुःवोत्पादिनीम्, 'अमणुन्न' अमनोज्ञां-पुत्रवियोगसूचकत्वेन आर्तध्यान ननिकाम् 'अमणाम' अमनोमां-मनः प्रतिक्लाम् अस्मुयपुवं' अश्रुतपूर्वा=पूर्वकदाचिदपि न श्रुतां. 'फरुसं' परुषां वज्रपातवत् कठारां गिरं वाचं श्रुत्वा निशम्य अनेन 'एयारूवेग' एतद्रूपेण 'मणोमाणसिएणं' मनोमानसिकेन 'तरण सा धारणीदेवी' इत्यादि , टीकार्थ-(तएणं) इसके बाद (सा धारिणी देवी)वह धारिणी देवी (तं अणिटुं) उस अनिष्ट (अकंत) अवाञ्छित, (अप्पियं) दुःखोत्पादक, (अमणुन्न) पुत्र वियोगकी मूचक होने के कारण आध्यानजकन (अमणाम) मनको अरुचिकारक, (अम्लुयपुर) अश्रुतपूर्व ऐसी (फरस) वज्रपात के समान कठोर (गिरं मोच्चा) मेव कुमार की बात सुनकर (णिसम्म) और उसे हृदय मे अवधारित कर 'इमेणं पयावेणं' इस वियोगरूप (महयापुत्त दुखणं) बहुत बडे पुत्र के दुःग्व से जो केवल (मणामागसि एणं) मनः 'तएण भा धारणा दे' इत्यादि --(तरण) त्या२ ६ (मा धारिणी देवी) पाणी हेवा (तं अगिट्रं मनिष्ट ( अकतं) मवात, (अपियं) दु:16 ( अमणु-नं ) पुत्र वियोगने सूचवना पाथी मातयान १४ ( अमणामं ) भनने २२थि४२, ( अम्स्तुयपुटव) अश्रूत पूर्व मेवी (फारुम) १००पातनी कम ॐ२, (गि सोच्चा ) मेघाभारनी पात नभनीन (णिसम्म ) अने तेने य+i Aqधारित ४ीने (इमेणं पयारूवेणं) २मा वियोग३५ (महया पुदुक्खेणं) म भाटा पुत्र३५ हुथी-32 ५४त ( मणो माणमिए णं ) भन जन्य उतु-वयनथी तेने ०९२ 42 न ४२२४4 ते तु-(अभिभूया समाणि ) दु:भी यती ( से यागयरोमकूबपगलत विलीण For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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