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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ१ सू २६ मे वकुमारस्य भगवदेश नादिनिरूपणम् ३२७ प्रत्यवरुह्य यत्रैव मातापितरो तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य मातापित्रोः पादवन्दनं करोति, कृत्वा एवमवदत्-एवं खलु हे मातापितरौ ! मया श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके धर्मे 'गिसते' निशान्तः श्रुतः, से वि य मे धम्मे' सोऽपि च मम धर्मः 'इच्छिए' इष्टः-इष्टसाधकत्वेन मतः पडिच्छिए' प्रतीष्टः आराध्यत्वेन विज्ञातः, 'अभिरुइए' अभिरुचित: आत्मप्रदेशैरास्वाद्यतामुपगतः। ततः खलु तस्य 'मेहस्स' गेवकुमारस्य मातापितरौ, एवं वक्ष्यमाणप्रकरण अवादिष्टाम् उक्तवन्तौ, 'धन्नेसि णं तुमं जाया!' हे जात ! धन्योसि= पर गये। (उवागच्छित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरूहइ) आते ही वे उससे नीचे उतरे और (पच्चीसहिना) उतरते ही (जे गामेव अम्मापियरोतेणामेत्र उवागच्छइ) जहाँ अपने मातापिता थे वहां पहुंचे (उवा गच्छित्ता अम्मापिऊणं पायबंदणं करेइ) पहुंचते ही उन्होने पहिले माता पिता के चरणों में नमन किया (करित्ता एवंवयासी) नमन करके फिर उनसे ऐसा कहा-(एवं खलु अम्मयाओ मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिए धम्ने णिसंते) हे माता पिता ? मैने श्रमण भगवान महावीर के मुख से धर्मका श्रवण किया है (से वि य मे धम्भे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए) सुनकर मुझे वह इष्टका साधक है ऐसा मुझे मान्य हुआ है। आराध्यत्वेन विज्ञात हुआ है और आत्मप्रदेशों द्वारा वह आस्वाधता को प्राप्त हुआ है (तएणं तस्स मेहस्स अम्मापियरो एवं वयामी) मेघ कुमार की इस बात को सुनकर उनके मातापिताने उनसे ऐसा कहा-(धन्नोसि तुमं जाया संपुन्नोसि तुमं जाया, कयत्थोसि पाताना भवन त२५ गया. ( उवागच्छित्ता चाउग्धंटाओ आसरहाओ पच्चो रुहः) (यां पांथीने २५ ५२थी नीय तय भने (पच्चोरुहिता) उतरीन (जेणामेव अम्मा पियरो तेणामेव उवागच्छइ) न्यो तेमना मातापिता तi त्यां पडांच्या. ( उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पागवंदनं करेह ) पायीन तेभाशे पडा मातापिताना मा १२२ नम२४.२ ४ा. (करिता एवं बयासी) नमन प्रशन पछी तेभो ४ ( एवं खलु अम्मयाओ मए समणस्स भगबओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते) भातापिता ! में श्रम मापान भाडावा२ना भुपा२वि थी धमनु श्रय ध्यु छ. ( से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ) सांमजान भने माम थयु ते भा। छष्टनो साथ છે. આરાધ્યત્વેન અને વિજ્ઞાત થયું છે અને આત્મપ્રદેશે. દ્વારા તે આસ્વાદ્યતાને प्रास थयु छ. (तएणं तस्स मेहस्स अम्मापियरो एवं वयंसी ) भेषभावना
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