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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्म कथाङ्गमैत्रे सम्बन्धमवचनम्, 'एव त्तयामिण भेत ! एवंप्रत्येमि खलु हे भगवान् यथा भक्ता प्रतिबोध्यतेः तथैव जीवादिस्वरूप मस्ती' ति प्रतीतिं करोमि । रोयामिणं भंते! रोचयामि खलु हे भगवन् पीयूषधारावद् वाञ्छामि । 'अन्भुडेमि णं संते ? निंपात्रयणं' अभ्युत्तिष्ठा भि= समाराधनार्थमुद्यतो भवामि, खल हे भगवान् ! नैर्ग्रन्थं प्रवचनम्, 'एवमेयं भंते !' 'एवमेतद् भगवन् ! एतत् प्रवचनम् एवम् - एकान्तेन सत्यमित्यर्थः, 'तहमेयं भंते । तथ्यं = प्रमाणम्, एतत् प्रचचनं हे भदन्त ! 'अति हमे भंते !" अवितथं= इस निर्ग्रन्थ प्रवचन पर । ( एवं परियामि भंते ) प्रतीति करता हूं आपके इस निर्ग्रन्थ प्रवचन पर । भगवान् ? आपने जिस प्रकार जीवादितत्त्व का स्वरूप समझाया है उसी तरह से वह यथार्थ है इस तरह की मेरे हृदय में पूर्ण श्रद्धा है और इसी तरह की मेरें चित्त में पूर्ण प्रतीति हो चुकी है। वह अन्यथा नहीं हैं और न अन्य था ही हो सकता है । (रोयामिणं भंते ) जिस प्रकार संतत पाणी अमृत धारा की चाहना करता है उसी तरह हे ना ? मैं भी संसार तप्त आपके इस निर्ग्रन्थ प्रवचन की चाहना करता हूँ । (अभ्युमिणं मते निग्गंथ पावयणं) अतः हे मदन्त ? मैं आपके इस निर्ग्रन्थ प्रवचन की सम्यक प्रकार से आराधना करने के लिये उद्यत होता है ( एवमेयं भंते ) कारण - आपका यह निर्ग्रन्थ प्रवचन एकान्ततः सत्य है। ( तहमेयं भंते ) कारण - आपका यह निर्ग्रन्थ प्रवचन (तह मेयं भंते ) हे मदन्त ? इस विग्रन्थ प्रवचन में एकान्तततः सत्यता की प्रख्यापक कोरी मेरी श्रद्धा आदि नहीं है किन्तु इसमें प्रमाणों का ल है । (अवितमेयं भंते ) कारण प्रत्यक्षादि प्रमाणों से किसी भी प्रकार पत्तियामि मंते ) तभाश या निर्बंथ अवयन पर प्रतीति (विश्वास) ४३ ४. હું ભગવન ! તમે જે રીતે જીવ વગેરે તત્ત્વાનું સ્વરૂપ સમજાવ્યું છે, તે જ પ્રમાણે તે સત્ય છે. આની મારા હૃદયમાં પૂર્ણ શ્રદ્ધા છે. અને આ પ્રકારની મારા ચિત્તમાં પૂર્ણપણે પ્રતીતિ પશુ થઈ ગઈ છે. તે અન્યથા નથી અને તે અન્યથા થઈ શકે नहि. (यामि । भंते ) प्रेम संतप्त प्राणी अमृतधारानी इच्छा छ, तेभ હે નાથ ! સંસાર તમ હું પણ આપના આ નિગ્રંથ પ્રવચનની ઇચ્છા કરૂ છું. ( अभ्युमिणं भंते निग्गंध पात्रयणं ) तेथी हे लहन्त ! तभाश निर्यथ प्रवयननी आदी पेहे आराधना उखा भाटे हुँ उद्यत थयो . ( एवमेयं भंते ) भिडे व्यायनु या निर्भथ अवयन अन्तत: सत्य है. ( तहमेयं भंते ) આ નિથ પ્રવચનમાં એકાન્તત : સત્યતાને કહેનારી ફકત મારી શ્રદ્ધા नथी पशु आभां प्रमाणोनु म छे. ( अवितह मेयं भंते ) एकान्ततः सत्य है | हे For Private and Personal Use Only लहन्त ! વગેરે જ भई प्रत्यक्ष वगेरे
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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