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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०८ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे " कर्मक्षयलक्षणं मोक्षरूपम्, आणयतिष्प्रापयति भव्यान् इति कल्याणस्तं मङ्गलं= हितकरं 'देवयं' दैवतं = देवतेव दैवतं स्वार्थेऽण' धर्मदेवमित्यर्थः 'चेइयं' चैस्यं= सर्वथा विशिष्टज्ञानवन्तं 'पज्जुवासामी' पर्युपास्महे = निरवद्यभावेन आराधयामः, 'एयं' एतत्=पर्युपासनं 'नो' नः = अस्माकं, 'पेच्चभवे' प्रेत्यभवे' परभवे 'हियाए ' हिताय - पथ्याहार इव, 'सुहाए' सुखाय भवभ्रमण विरमण जनितशान्तये, 'खमाए' क्षमाय - मोक्षमार्गाराधनक्षमता सिये, 'निस्सेयसाए' निःश्रेयसाय = मोक्षाय, 'अणुगामित्ताए' अनुगामिकत्वाय भवपरम्परासुखानुबन्धिसुखाय भविष्यतीति कृत्वा - इतिवहवः 'उग्गा' उग्राः = ऋषभदेवेन आरक्षकपदे नियुक्ताः कोपाला रक्षकवंशजाः, जाव यावत्, अत्र यावच्छब्देन इदं द्रष्टव्यम् ' उग्गपुत्ता' उग्रपुत्राः 'भोगा' भोगाः=ऋषभदेवाव स्थापित गुरुवंशजाः - गुरुस्थानिया इत्यर्थः, 'भोगपुत्ता' भोगपुत्रा' एवं 'राइन्ना' राजन्याः - भगवद्वंशजाः, 'खत्तिया' जो भव्य जोनों के लिये भवरोग रहितत्वरूप कल्प की कि जो सकल कर्म क्षयरूप है मोक्षकी प्राप्ति कराने में निमित्तभूत होता है ऐसे कल्याण रूप तथा मंगलरूप, धर्मदेव की जो चैत्य रूप सर्वथा विशिष्ट ज्ञानशाली है चलो पर्युपासना करें - निरवद्यभाव से उनकी आराधना करें। "एयंनो पेच्चभवे हियाए, सुहाये, खेमाए, निस्सेयसाए, अणुगामित्ताए" इस तरह की गई पर्युपासना हम लोगों को परभव में हित के लिये भवभ्रमण के विरमण से जनित शान्ति के लिये, मोक्षमार्ग के आगधन की क्षमता प्राप्ति के लिये मोक्ष के लिये तथा भव परम्परा मे सुखानुबंधी सुख के लिये होगा. इस भावना से (बहवे ) अनेक ( उग्गा) रक्षक वंशज पुरुष कि जिन्हें ऋषभदेवने आरक्षक (कोटपाल) पद पर नियुक्त किया था वे तथा यावत् शब्द द्वारा (उग्गपुता) भोगा, भोगपुत्ता ज्ञइन्ना खत्तिया, રાગ રહિતત્વરૂપ ‘કલ્ય’ની-કે જે સકલ કક્ષય રૂપ મોક્ષની–પ્રાપ્તિ કાવવામાં નિમિત્તભૂત હોય છે, તેનું નામ કલ્યાણ છે. એવા કલ્યાણુરૂપ તેમજ મંગળરૂપ ધર્માંદેવનીકે જે ચૈત્યરૂપ સર્વથા વિશિષ્ટ જ્ઞાનશાળી છે ચાલો આપણે પ`પાસના કરીએ. નિરवद्य लावे तेभने आराधीये. एयं नो पेच्चभवे हियाए, सुहाए, खमास, अणुगमित्ताए' मा प्रभानी पर्युपासना अमने परलवमां डितना भाटे, लवभ्रभशुना વિરમણથી જનિત શાંતિના માટે, મેક્ષ માના આરાધનના સામર્થ્યને માટે, મેાક્ષના भाटे तेभन लव परंपराभां सुभानुमंधी सुमना भाटे थशे. या भावना द्वारा ( बहवे ) धा (उग्गा) २४१४ पुरुष - नेभने ऋषभदेवे मारक्ष (अटवास) पहे नियुक्त य हुता तेथेो तेभन 'यावत्' शब्द द्वारा (उग्गपुत्ता भोगा, भोगपुत्ता, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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