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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २० ज्ञाताधर्म कथासूत्रे , अनेकस्तम्भतसनिविष्टं तदनार्थ अनेकानि स्तम्भशतानि संनिविष्टानि यत्र तत्, 'लीलाडियसालभंजियं' लीलास्थितशालभञ्जिकं, लीचास्थिताः =नृत्यन्त्य इव स्थिताः शालभञ्जिकाः = पुत्तलिका यस्मिन् तत्, 'अन्युग्गय सुकयवइर बेइया तोरण, वररइयसालभंजिया सुसिलिहविसिल सठियपसत्थवेक लियखंभ, णाणामणिकणगरयणख चियउज्जलं, अभ्युद्गत सुकृतवज्र वेदिकातोरण वरचित शालभंजिका मुश्लिष्ट, विशिष्ट लष्ठ संस्थित प्रशस्त वैडूर्य स्तंभ, नानाम णिकनक रत्नखचितोज्वलं तत्र - अभ्युद्गता=जध्वभूता सुकृता=सुष्ठुरीत्या कृता = निर्मा पिता वज्र वेदिका=वज्ररत्नस्य वेदिका, द्वारस्य दक्षिणवामभागे, द्वारोपरि तोरणानि च यत्र तत्, वराः श्रेष्ठा रचिता मनोहरा शालभंजिकाः कृत्रिम पुतलिकाः सुश्लिष्टाः सुसम्बद्धा विशिष्टसंस्थिताः = विशिष्टा लष्टाःसुन्दराः संस्थिताः, संस्थानवन्तः- यद्वा-संस्थिताः = संलग्ना, प्रशस्ता मनोहरा वैडूर्यरत्नानां स्तम्भाःयत्र तत् तथा,नानामणयः=चन्द्रकान्त सूर्यकान्तादयः कनकं शुद्ध सुवर्ण तद्वत् देदीप्यमानानि रत्नानि कर्केतनादीनि तैः खचितं=जटितम् अतवए सैकडो भोपर खडा किया गया था । (लीलडियसालभंजियं) इसके ऊपर नव पुतलिकाएँ उकेरी गई थीं वे ऐसी मालू पडती थी जैसे मानी नाच रही हों । (अब्भुग्गयसुकवइरवेइयातोरणवररइय साल मंजिया सुपलिविसिद्धसंठियं पसत्यवे रुलियखं भणाणामणिकणगरयणचचियउज्जलं) द्वार के नाम भाग में जो वज्र रत्न की वेदिका बनाई गई थी वह बहूत ऊँची थी तथा बहुत मजबूत थी साथ में द्वार के ऊपर तोरण भी बनाने में आये थे। इसमें जो स्तंभ लगे थे वे सुन्दर उत्कीर्ण (खोदीगई) शालभंजिकाओं पुत्तलियो से सुश्लिष्ठ थे - सुद्ध थे तथा विशिष्ट मनोहर संस्थान वाले थे। और सुन्दर वैडूर्यरत्नों के बने हुए थे । चन्द्रकां सूर्यकान्त आदिमणियों से तथा शुद्ध सुवर्ण के समान देदीप्यमाम कर्केतनादि आव्यो हुतो. (लीलड्डियसालभंजियं) मे थांला उपर ने यूतणीओ प्रेतरेसी हुती, लागे तेथेो नायी रही होय सेभ स.गती हुती. (अब्भुग्गय सुकय artवेडया तोरणवर रहयसालभंजिया सुसिलिङ विसिटियं सत्य वेरु लियखं भणाणामणिकणगरयणख चियउज्जलं) हरवान्ननी अमी બાજુએ હીરા અને રત્નાની જે બેઢિકા બનાવવામાં આવી હતી તે બહુજ · ઊંચી તેમજ અત્યન્ત મજબૂત હતી. દરવાજા ઉપર તેારણ પણ બનાવવામાં આવ્યાં હતાં. એમાં જે સ્તંભે હતા તે સુન્દર રીતે કોતરવામાં આવેલી શાલ ભંજિકાઓથી સુશ્લિષ્ટ હતા, સુસંબદ્ધ તેમજ સિવશેષ મનેહર સંસ્થાનવાળા હતા, અને સુન્દર વૈય રત્નાના બનેલા હતા. ચન્દ્રકાંત સૂર્યકાંત વગેરે મણિએ દ્વારા તેમજ શુદ્ધ સોનાના જેવા ચમકતા કેતન Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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