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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २०० शाताधर्मकथाङ्गलो गायणाणंदे सरयचंदे दिव्वोसहि पन्जलुजलिय दंसणाभिरामे उउलच्छा समत्तजायसोहे पइट्टगंधुद्धयाभिरामे मेरुलिय नगवरे विगुध्वियवि. चित्तवेसे दीवसमुद्दाणं असंखपरिमाणनामधेजाणं मज्झं कारेणं वीइवयमाणे उज्जोयंते पभाए विमलाए जीवलोग रागिहं पुरवरं च अयस्स य तस्स पासं ओवयइ दिव्वरूपधारी ॥१५॥ सू०॥ टीका-'तएणं से' इत्यादि । ततःखल स अभयकुमारः सत्कृतः संमा नितः प्रतिविसर्जितः सन् श्रेणिकस्य राज्ञोऽन्तिकात् प्रतिनिष्कामति, प्रतिनिक्रम्य यत्रैव स्वकं भवनं तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य सिंहासने निषण्णः । ततः खलु तस्य अभयकुमारस्य अयमेतद्रपःवक्ष्यमाणस्वरूपः 'अज्झस्थिए' आध्यात्मिकः आत्मगतो विचारः पावत्-समुत्पद्यत-'नो खलु सक्का' नो खलु शक्यं मानुष्येण उपायेन मम लधुमातुः धारिण्या देव्याः अकाल दोहद मनो 'तएणं से अभयकुमारे' इत्यादि ॥ टीकार्थ-(तएणं से अभयकुमारे) जय पिता द्वारा वे अन पकुमार सत्कारित एवं सम्मानित होकर (सेणियस्स रन्नो तयाभ पडि निक्खमइ) वे श्रोणिक राजा के पास से चले आये (पडि निक्खमित्ता) और आकर के (जेणामेव एए भवणे तेणामेव उवागच्छइ) जहां अपना भवन था वहाँ आ गये । (उवागच्छित्ता सीहासणे निसण्णे) आकर अपने सिंहासन पर बैठ गये (तएणं तस्स अभयकुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव संमुप्पज्जित्था) बैठने के कुछ देर बाद उनके चित्त में ऐसा विचार उत्पन्न हुआ-(णो खलु सक्का माणुस्सएणं उवाएणं 'तएणं से अभयकुमारे इत्यादि टार्थ-(नएणं से अभयकुमारे) पिताना पाथी स४२ भने सन्मान प्रात ४रीने समयभार विहाय थया. (सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक मइ) भने श्रेणिs totra पासेथी भाव २बा, (पडिनिवखमित्ता) भावीने (जेणामेवसए भवणे तेणामेव उवागच्छइ) पोताना भडसमा पार्या, (उवागच्छित्तासीहासणे निसणे) भने सिंहासन S५२ वि२०४ान थया. (त एणं तस्स अभयकुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पन्जिया) 21 पछी मेमना मनमा विचार या 3 (णो खल सक्का माणुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकालदोहलमणोरहसंपत्ति करित्तए) भा। नाना (५५२) भाता For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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