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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ १ स १४ अकालमेघदोहदनिरूपणम् १९७ न्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य हृष्ट० यावत् हृदयः श्रेणिकं राजानमेवमवदत्मा खलु यूयं हे तात! अपहतमनःसंकल्पा यावद ध्यायत आतथ्यांनं माकुरुत, अहं खलु तथा करिष्यामि. यथा खलु मम लघुमातुर्धारिण्या देव्या अस्यैतद्रूपम्याकालदोहदस्य मनोरथसंपत्तिर्भविष्यति, इति कृत्वा श्रेणिकं राजानं ताभिः इष्टाभिः यावत् 'समासासेइ' समाश्वासयति श्रेणिकनृपस्य विश्वासमुस्पादति । ततःस श्रेणिको राजा अभयेन कुमारेण एवमुक्तासन हृष्टतुष्टो यावद् अभयकुमारं सत्करोति संमानयति, सत्कृत्य संमान्य प्रतिविसर्जपति।१।म. ने बहुत अधिक हर्षित हृदय होकर उनसे इस प्रकार कहा-(माणं तुम्भ ताओ? ओहयमणं जाप झयायह अहष्णं नहा करिस्मामि जइणं मम चुल्ल माउयाए धारिणीए देवीए अयमेयास्वरस अकाल मोहलस्स मणोरहसंपत्ति भविस्मइत्तिकई सेणियं रायं ता िइटाहि कंताहिं जाव समासासेइ)ते तात ? आप अपहत मनः संकल्प आदि वाले मत होओ और न किसी प्रकार का आतध्यान ही करो-मैं ऐसा उपाय करूँगा कि जिस से मेरी छोटी माता धारिणीदेवी के इस अकालोद्भूत दोहद की मनोरथ संपत्ति संपन्न हो सके ऐसा कहकर अभयकुमारने श्रेणिकराजा को कांत, इष्ट, आदि विशेषणों वाले वचनों से आश्वासन बंधाया-उन्हें विश्वास पदा कराया-(तएणं सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हा तुष्ट ज्जाव हि पए अभय कुमारं सक्कारेइ सम्मागेइ सक्कारिता सम्माभित्तापडि विसज्जेइ) १४ अभयकुमार के द्वारा इस प्रकार कहे गये वे श्रणिक गजा बहुत अधिक हर्षित हृदय आदि हुए और फिर उन्होंने अभयकुमार का सन्कार और सम्मान किया। सत्कृत और सन्मानित कर बाद में उन्हें यता अन्त्यमा पिताने धु-(माणं तुब्भताओ? ओहयमणं जाव झियायह अहणं तहा करिस्मामि जहणं मम चुलमाउयाए धारिणीए देवीए अयमेयारूवस्स अशालदोहलस्स मणोरहसपत्ती भविम्सइ त्तिक सेणियं राय ताहिं इट्ठी कंताहिं जाव सम सासेइ) तात! तमे मी-- था। भने पy જાતની ચિંતા ન કરે. હું એવી રીતે પ્રયત્ન કરીશ કે જેથી મારા (અપર) નાના માતા ધારિણુદેવીનું અકાળ દોહદ-મને રથ-પુરું થાય, આ પ્રમાણે અભયકુમારે ઈષ્ટકાંત વગેરે વિશેષણવાળા વચનેથી શ્રેણિક જિાને આશ્વાસન આપ્યું અને હૃદયમાં विश्वास Sपन्न ध्या. (तएणं सेणिए राया अभएणं कुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हतुट नाव हियए अभयकुमारं सक्कारेइ संमाणेइ सक्कारिता सम्माणिना पडिविसज्जइ) मा प्रभारी मलयभार १ ४वामां आवेडा त म प्रसन्न For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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