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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अदृश्य का इन्कार क्यों नहीं कर सके ? : पर हे गौतम अग्निभूति ! इस पर दो प्रश्न हैं : (अ) एक तो यह, कि जो वस्तु दिखाई नहीं देती क्या वह जगत में - होती ही नहीं ? और (ब) दूसरा यह कि वह वस्तु तुम्हें दिखाई नहीं देती अतः नहीं __ माननी ? या किसी को भी दिखाई नहीं देती अतः नहीं माननी ? (१-५) प्रथम प्रश्न के उत्तर में यह समझना है कि ऐसे अनेकानेक बाधक हैं जिनके कारण विद्यमान वस्तु भी हमें दिखाई न दे, फिर भी वह वस्तु हमें माननी तो पड़ती ही है । अपनी प्रांख अतिनैकट्य वश हमें दिखाई नहीं देती फिर भी क्या हम कहते हैं कि प्रांख नहीं है ? न देख सकने में ऐसे अनेक बाधक हैं यह आगे सोचेंगे; किन्तु अदृश्य कर्म से डरो:-अग्लिभूति को भगवान द्वारा कथित ये वचन हमें भी विचारणीय हैं। वस्तु हम देख नहीं सकते, इतने ही से उसका निषेध कैसे किया जा सकता है ? आधुनिक युग में तार में विद्युत शक्ति, लोहचुम्बक में चुम्बक शक्ति, परमाणु आदि में अदृश्य तत्त्व भी अवश्य माने जाते हैं तो आश्चर्य है कि जब शास्त्र की बात आती है या धर्म और तत्त्व की बात पाती है तो 'कहां दीखती है ? कहां दीखती है ? दीखे तो बतायो' ऐसा कह कर उस पर अश्रद्धा की जाती है ! और उसे अस्वीकार किया जाता है। ऐसी अदृश्य कर्मसत्ता की उपेक्षा कर उत्तम मानव भव अज्ञानतावश अत्यल्पकालिक प्रायु में तुच्छ विकल्पों, मताग्रहों और विषय सुखों की खातिर भ्रष्ट किया जाता है और भावी प्रति दीर्घ काल के लिए भयंकर दुःख उत्पन्न किये जाते हैं, परन्तु समझ लेना चाहिए कि ऐसे अनेकानेक कारण हैं कि जिनके जरिए वस्तु नहीं भी दीखती या जानने में नहीं भी पाती, इससे उस वस्तु की सत्ता में प्रश्रद्धा करने का कारण नहीं होता। अश्रद्धा करने वाला पुरुष कर्मसत्ता को नहीं मानता हुअा भी इतना तो देखता ही है कि,—(१) अपनी इच्छा के विरुद्ध बहुत कुछ हो रहा है, और (२) बहुत इच्छा होने पर भी तद्नुसार For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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