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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२ प्रकार समझौता कर सके ? खट्टा माना परन्तु रस से वो माने ही छुटकारा मिल सकता है । भिन्न और अपने २ स्वतन्त्र विषय वाली प्रांख श्रौर जीभ दोनों परस्पर किस कि 'आम को मैंने रंग से यहां 'मैं' के रूप में प्रमा दोनों में से कौन माने मीठी अनुभूत किया ?' (e) शरीर यह घर और पैसे की भाति ममत्व करने की वस्तु है, तो शरीर का ममत्व करने वाला कौन है ? घर, पैसे, तिजोरी, फर्नीचर आदि वस्तुएं स्वयं ही अपने पर ममत्व नहीं करते । ममत्व करने वाला कोई भानहीन पागल है । इस प्रकार 'मेरा शरीर थका हुआ है, अभी तुम्हारा श्रदिष्ट चक्कर खा नहीं सकता' ऐसा देह पर ममत्व रखने वाली ग्रात्मा है । अब ममत्व अभ्यास से आता है तो नवजात शिशु को स्वशरीर का ममत्व कैसे हुआ ? यहां तो इसका अभी जन्म होने से कोई अभ्यास नहीं । तब फिर मानना ही पड़ता है कि पूर्व जन्म के अभ्यास से यहां जन्म से ही ममत्व होता है । इस प्रकार दो जन्मों के बीच संलग्न एक स्वतन्त्र आत्मा सिद्ध होती है । (१०) मानसिक सुख - दुःख का अनुभव करने वाला कौन ? पक्वान्न जीमने बैठे और वहाँ हजारों रुपयों को हानि का तार प्राप्त हुआ; तब फौरन दुःखी कौन हुआ ? बेचैनी का अनुभव किसने किया ? शरीर में तो मीठे पक्वान्न की मस्ती कायम है, और शरीर पर कोई श्राघात हुआ नहीं । मानना होगा आत्मा बेचैन हुई । इसी तरह सड़ी हुई पीड़ाकारी अंगुली कटवाई; वहां शरीर सुखी हुआ ऐसा लगता हैं; क्यों कि श्रागे सड़न और पीड़ा होने से बचे । परन्तु जीवन भर 'हाय ! मेरी अंगुली गई' इस प्रकार दुःखी कौन होता है तो उत्तर यही करना होगा कि प्रात्मा । (११) माता पिता से बच्चे का शरीर बना; फिर भी जहां बच्चे में उनकी अपेक्षा विलक्षण गुरण और स्वभाव दिखाई पड़ते है, वहां ऐसा क्यों ? स्वभाव से माता क्रोधिनी और पुत्र शान्त ! ऐसा क्यों ? तो मानना पड़ता है कि दोनों के शरीर में पूर्वभव के संस्कार लेकर आई हुई दो स्वतन्त्र श्रात्मानों For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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