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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . एकघात समीकरण सम्बन्धि प्रश्न । २७१ किसी के पास जो द्रव्य वा धान्य इत्यादि पदार्थ उसी का है वह उस का धन है इस लिये उस पदार्थ की संख्या धन कहाती है और जो पदार्थ उस के पास दूसरे का हो वह उस का ऋया है इस लिये उस पदार्थ की संख्या ऋणा कहाती है । यों पदार्थ का धनत्व और ऋणत्व है । इसी प्रकार से जब एक स्थान से कोइ किसी एक दिशा में चला जाता है तब उस का उस स्थान से जितना अन्तर हो वह अन्तर देश उस का धन है । इस लिये उस अन्तर देश की संख्या धन कहलाती है । और जब वह उसी दिशा की विपरीत दिशा में चलेगा अर्थात् उसी मार्ग में पीछे चलेगा तब वह चलने का देश उस का ऋण है इस लिये उस उलटी दिशा में चले हुए देश की संख्या ऋण कहाती है । जैसा को मनुष्य किसी नगर से पूर्व दिशा में १० कोस गया और फिर वहां से लौट के पश्चिम दिशा में अर्थात् पूर्व दिशा की विपरीत दिशा में 9 कोस पीछे चला गया तब यहां १० यह संख्या धन है और यह ऋण संख्या है । यहां जो ऐसा प्रश्न हो कि वह मनुष्य तब उस नगर से कितनी दूर पर किस दिशा में होगा ? तो यहां + १० और – ७ इन का योग + ३ है इस लिये वह मनुष्य उस नगर से ३ कोस पर होगा और तीन धन है इस लिये उस नगर से पूर्व दिशा में होगा । यह उस प्रश्न का उत्तर है । और जो वह मनुष्य लौट के पश्चिम दिशा में १२ कोस चला हो तो यहां १२ यह संख्या 7 - 1 होगी । तब + १० और १२ इन का योग - २ है इस लिये वह मनुष्य उस नगर से पश्चिम में दो कोस पर होगा । यह उत्तर है । यों देश का धनत्व और ऋणत्व है । और इसी भांति किसी क्षण से जैसा सूर्योदय से १० घड़ी बीती हैं यह १० संख्या धन है तब यहां से पीछे उलटा जो काल होगा उस की संख्या ऋण है। यों काल का धनर्णत्व है । यों सर्वत्र धन संख्या से विपरीत ऋण संख्या जानो । इस लिये प्रश्न के उत्तर में जो कोइ मान ऋण आत्रे तो जो वह वृद्धि का मान हो तो उतना ह्रास जानो । जो ह्रास का मान ऋण आवे तो उतनी वृति समझो। यो जो लाभ का मान ऋण हो तो उतनी हानि For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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