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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra freसम्बन्धि प्रकीर्णक । जब कि = तब (१८) वे प्रक्रम की दूसरी प्रत्यक्ष बात से य+१+१, अर्थात् य+ल = य - र और यू - १ = बल – १, अर्थात् - इस लिये उसी प्रत्यक्ष बात से य+T य - र ल + व र व अर्थात् य .. = +1 X य + र प्रथ कर .. अर्थात् दूसरा सिद्धान्त । जो य और अय गय इस की उपपत्ति | ब - अर्थात् 447 अनुमान । जो य+र्ल - वहा तो य= र ल+ब य र व - - - होगा । इस की युक्ति ऊपर के प्रकार के विलोम विधि से लब यह सिद्ध हुआ । | । - कर अल कव घर गल घव www.kobatirth.org अय + कर गय + घर = कर घर अय + कर कर घ (आय + कर ) क (गय + घर) X अय + कर गय + घर तब = : +9= 14 इसी प्रकार सिद्ध होता है कि गय + घर, घर अब (१८) वे प्रम की दूसरी प्रत्यक्ष बात से, चल + का कव X I त्राल कव + १ अर्थात् अय + कर कर + - घ व हो तो ल घर गय+घर अय चल = कर कव अल + कटा गल + व घ (अल + कव) क ( गल + घव) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रय + कर चल + का गय + घर गल + घव = अल + का कव 1 1 For Private and Personal Use Only = X स्पष्ट है । अल + कटा कव गल + घव घव गल + घव घव यह सितु हुआ 1 f 1 घव गल + घव 1 1 १६०
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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