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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०४ www.kobatirth.org लघुतमापवर्त्य । उद्दिष्ट दो पदों के गुणनफल में उन पत्रों के महसमापवर्तन का भाग देओ जो लब्ध होगा वही उन पदों का लघुतमापवर्त्य है । इस की उपपत्ति । यहां पहिले यह सिद्ध करना चाहिये कि दो पदों का उन के लघुतमापवर्त्य में अलग २ भाग देने से जो लब्धि आवेंगी वे परस्पर दृढ होंगी । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 जैसा । जो अ और क इन दो पदों का लघुतमापवर्त्य ल हो और अप और ल कफ हो तो प और फ ये दो लब्धि परस्पर दृढ ल होंगी । क्या कि जो ऐसा न हो अर्थात् प और फ इन का भी साधारण अपवर्तन द हो जैसा कि प= दपे और फ = दफे तो ल = अदपे = कदफे | इस से स्पष्ट है कि द इस साधारण अपवर्तन का जो अदपे वा कदफे इस लघुतमापवर्त्य में भाग देओ तो भजनफल अपे वा कफे (जो लघुमापवर्त्य से अवश्य छोटा चाहिये) अ और क इन दोनों पदों का साधारण अपवर्त्य होगा । परंतु यह असंभव है क्योंकि पत्रों का लघुतमापवर्त्य वही है जो उन के साधारण अपवर्त्य में सब से छोटा है तब उस से भी छोटा उन का साधारण अपवत्यं क्यों कर होगा ? इस से सिद्ध हुआ कि प और फ ये दोनो लब्धि परस्पर दृढ होंगी । = अब मानो कि अ और क इन का महत्तमापवर्तन म है और तम और क थम तो ल = अप तमय और ल कफ थमफ इस लिये तमप = थमफ वा तप = थफ होगा। अब ऊपर सिद्ध किया है कि परफ ये परस्पर दृढ हैं और त और थ ये भी परस्पर दृढ हैं क्योंकि ये और क इन को दही के महत्तमापवर्तन से निःशेष करने से लब्ध हुए हैं। अब तप 11 थफ इस से स्पष्ट है कि थफ यह प से निःशेष होता है और प यह फ से दृढ है इस लिये (४४) वे प्रक्रम से य यह प से For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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