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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org महत्तमापवर्तन | अध्याय ३ । ————————$($at Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस में बीजात्मक पदों का महत्तमापवर्तन और लघुतमापवर्त्य जानने के प्रकार हैं । १ महत्तमापवर्तन । ४६ । जो दो वा बहुत पद जितने पदों से अपवर्त्य हैं उतने उन पदों के अपवर्तन कहलाते हैं और उन अपवर्तनों में जो सब से बड़ा हैं उस को उन दो वा अधिक पदों का महत्तमापवर्तन कहते हैं । 대 जैसा । अकग और कगघ इन दो पदों के क, ग और कगु इतने - अपवर्तन हैं और इन सभों में कम सब से बड़ा है इस लिये यह उन दो पदों का महत्तमापवर्तन है । इसी भांति अकगर, अगयर और गयरल इन के ग, र और गर इतने अपवर्तन हैं परंतु इन में गर सभों से बड़ा है इस लिये यह महत्तमाप्रवर्तन है । जानना चाहिये कि यहां महत्तमापवर्तन करने से भी वह अपने पदों को निःशेष कर सकता है पर सर्वदा महत्तमापवर्तन को धनात्मकः हि मानते हैं । ४७ । जो बीजात्मक केवलपदों का महत्तमापवर्तन जानना हो तो वह उन पदों को बिचार के देखने से तुरन्त ज्ञात होगा । जैसा नीचे लिखे हुए उदाहरणों में । उदा० (१) २४ अय ेर और १६ यरल इन- का महत्तमापवर्तन व्य है । क्योंकि २४ अय = ८ ६२३२ X ३ ग्रर और १६ घरेल = ८ १२ x २ यल यहां ३ पर और २ यल ये दूसरे अवयवः परस्पर. दृढ For Private and Personal Use Only 1 उदा० (२) १५ ऋक, १० कय और २० करें इन का महत्ततापवर्तन ५ है इसका भी कारण वहां है ।
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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