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(६२) तिविहे दुप्पणिहाणे--सामायिक में मनको अपने काबू
में नहीं रखा, वचन को संयम में नहीं रखा और काया की चपलता को नहीं रोकी, इन
तीन प्रकार के प्रणिधान में अणवट्ठाणे तहा सइविहणे--सामायिक का काल
पूरा हुए पहले पार लेना ४, तथा प्रमादवश
सामायिक करना भूल जाना ५, सामाइय(ए) वितहकए--सामायिकवत भलीरीत से नहीं
करने से पढमे सिक्खावए निंदे।-प्रथम शिक्षावत में जो अति
चार लगे हों उनकी मैं निन्दा करता हूँ ॥२७॥ आणवणे पेसवणे--नियम में रक्खी हुई भूमि के बाहर
से कोई वस्तु मंगाने १, कोई चीज बाहर
भेजने २, सद्दे ख्वे अ पुग्गलक्खेवे-अपना कोई कार्य कराने वास्ते
खांसी, खंखारा आदि शब्द करने ३, अपने अवयवों को दिखाने ४ और कंकर आदि फेंकने ५ आदि से किसी व्यक्ति को अपना
कार्य जनाना आदि से देसावगासिअम्मी--दिशावकासिक' नामक
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