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(५६) इत्थ पमायप्पसंगणं ।--इस व्रत में प्रमाद के प्रसंग से
कुछ भी उल्लंघन किया हो॥१५॥ वो यह किअप्परिग्गहिआ इत्तर--किसी ने ग्रहण न की हुई कुमारी
कन्या, विधवा और वेश्या के साथ भोग करना १, द्रव्य देकर या नौकर रखकर स्वल्पकाल के लिये किसीने पासवान रूप से
कायम की हुई स्त्री से भोग करना २, अणंगवीवाहतिव्वअणुरागे-सृष्टि विरुद्ध कामक्रीडा
या परस्त्री के साथ आलिंगन, चुम्बनादि करना ३, दूसरों का विवाह करना या कराना ४, और कामभोग की प्रबल अभिलाषा
( बांछा) रखना ५, चउत्थवयस्सइआरे--चौथे व्रत के पांच अतिचार पडिक्कमे देसि सव्वं ।-दिवस सम्बन्धी सब या एकादि
लगे हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ॥१६॥ इत्तो अणुव्बए पंचमम्मि--इसके बाद पांचवें अणुव्रत में आयरिअमप्पसस्थम्मि--अप्रशस्त (अशुभ) भाव में वरते परिमाणपरिच्छेए--परिग्रह के प्रमाण का उल्लंघन करने से इत्थ पमायप्पसंगेणं।--इस व्रत में प्रमाद के प्रसंग से
जो कुछ दोष लगा हो ॥१७॥ वो यह कि
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