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(५४) बीए अणुव्वयम्मि-दूसरे अणुव्रत में परिथूलगअलियवयणविरहओ-स्थूल मृषावाद की
विरति सम्बन्धी आयरिअमप्पसत्थे-अशुभ भाव में वरतते आचरण
किया हो और इत्थ पमायप्पसंगणं । -प्रमाद के प्रसंग से इसमें जान,
अजान में दोष लगा हो ॥११। वो यह किसहस्सा-रहस्सदारे--बिना. विचारे किसी पर कलंका
रोपण करना १, एकान्त में बात करनेवालों पर कोई दोषारोप करना २, अपनी स्त्री की
गुप्त बात प्रकट करना ३, मोसुवएसे अ कूडलेहे अ—किसीको खोटी सलाह देना
४, और जाली खोटा लेख बनाना ५,
४, आर जाला खाद बीयवयस्सइआरे--दूसरे व्रत के पांच अतिचार या इनमें
__ से कोई भी अतिचार दोष पउिक्कमे देसि सव्वं ।--दिवस संबन्धी लगे हों या
... लगा हो उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ॥१२॥ तइए अणुव्वयम्मी-तीसरे अणुव्रत में थूलगपरदव्वहरणविरहओ--स्थूल परद्रव्यहरण (अद
त्तादान) की विरति सम्बन्धी
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