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१८ अढारमे मिथ्यात्वशल्य — कुदेवादि खोटे तत्वों का आग्रह ( हठाग्रह ) रखना,
ए अदार पापस्थान माहिं माहरे जीवे—इन अष्टादश पापस्थानों को या इनमें से मेरे जीवने
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जे कोई पाप सेन्युं होय, सेवराव्यं होय जो कोई भी पापस्थान आचरण किया हो, दूसरों को आचरण काराया हो
सेवता प्रत्ये अनुमोद्यं होय - आचरण करनेवालों को अच्छा माना हो तो
ते सवि हुं मन वचन कायाए करी—उन पापस्थान का मन, वचन और काया से
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं उनको या उसको खोटा मानता हूँ । इस आलोचना से वह पाप निष्फल हो । " सव्वस्व देवसिभ दुच्चिति दुब्भासिअ दुच्चिट्ठिअ इच्छाकारेण संदिसह भगवं ! इच्छं, तस्स मिच्छा मि दुकडं " इसका अर्थ पहले लिखा जा चुका है ।
३३. वंदित्तु (श्राद्धप्रतिक्रमण ) सुत्तं ।
वंदित् सवसिद्धे -- सर्वसिद्ध भगवानों को नमस्कार करके धम्मायरिए अ सव्वसाहू अ-तथा धर्माचार्यों को और सर्व साधुओं को वन्दन करके
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