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(४२) अणुजाणह मे मिउग्गह--मुझको परिमित अवग्रह की
आज्ञा दीजिये निसीहि--गुरुवन्दन के सिवाय अन्य पापव्यापार को
छोड़ कर मैं अवग्रह में बैठता हूँ अहोकायं--आपके चरणकमल का कायसंफासं--अपने उत्तमाङ्ग से स्पर्श करता हूँ खमणिज्जो--क्षमा के योग्य मे किलामो--आपको मेरे स्पर्श करने से कोई भी बाधा
उत्पन्न हुई हो तो क्षमा करें अप्पकिलंताणं-अल्प ग्लानिवाले बहुसुभेण भे---आपका बहुत सुख शान्ति से दिवसो वइक्कतो-दिवस व्यतीत हुआ ? जत्ता भे-आपकी तप, नियम, संयम और स्वाध्याय
रूप यात्रा में किसी प्रकार की बाधा तो
नहीं है ? जवणिज्जं च भे--आपका शरीर, मन और इन्द्रियाँ तो
पीडा रहित हैं ? खामेमि खमासमणो--हे क्षमाश्रमण ! यदि कोई अप
राध हुआ हो तो उसको खमाता हूँ, देवसिअं वहक्कम-दिवस सम्बन्धी अपराध से,
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