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(३२) नंदी सया संजमे-वह निजमत नित्य हमारे संयम की
वृद्धि करो देवनागसुवण्णकिन्नरगण-वो जिनमत देवों, नाग
कुमारों, सुवर्णकुमारों और किन्नरों के
समूह द्वारा सम्भूअभावच्चिए-उत्तम भाव से पूजित है लोगो जत्थ पइटिओ जगमिणं तेलुकमच्चासुरं
जिस जैन सिद्धान्त (जिनमत ) में तीनों काल सम्बन्धि ज्ञान, यह जगत् , तीनों लोक मनुष्य, और असुरादि का स्वरूप प्रतिष्ठित
( वर्णित ) है. धम्मो वड्ढउ सासओ विजयओ धम्मुत्तरं वड्ढउ
ऐसा शाश्वत और विजयशाली श्रुतधर्म वृद्धि
करो ॥४॥ सुअस्स भगवओ करेमि काउसरगं वंदणवत्तिआए.
अन्नत्थ०-ऐसे श्रुतधर्म रूप भगवान् की आराधना और वन्दनादि के निमित्त में
कायोत्सर्ग करता हूँ।
२४. सिद्धाणं बुद्धाणं सुत्तं । सिद्धाणं बुद्धाणं-सिद्धिपद को पाये हुए, ज्ञान से सब
वस्तु को जाननेवाले १ यहाँ 'अन्नत्थ०' सूत्र का पाठ पूरा बोल कर कायोत्सर्ग करना ।
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