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( ११ ) समाहिवरमुत्तमं दिंतु । -- और ऊत्तम प्रकारकी आत्मसमाधि को अर्पण करें ॥ ६ ॥
चंदेसु निम्मलयरा, - ये सिद्ध चन्द्रमा से भी विशेष निमल हैं, आइच्चेसु अहियं पयासयरा । - - सूर्योंसे भी अधिक प्रकाश करनेवाले हैं और
सागरवरगंभीरा, स्वयम्भूरमण समुद्र से भी अधिक गंभीर हैं
सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु-- ऐसे सिद्ध भगवान् मेरे को सिद्धिपद (मोक्षपद ) प्रदान करें ||७||
९. सामायिक - सुत्तं ।
करेमि भंते ! सामाइयं, - - हे भगवन् ! मैं सामायिक क्रिया ग्रहण करता हूँ
सावज्जं जोगं पच्चक्खामि - - सर्व सावद्य ( पापरूप व्यापार) का त्याग करता हूँ
जाव नियमं पज्जुवासामि - जब तक मैं दो घडी (४८ मिनिट) तक नियम का सेवन करूं तब तक दुविहं तिविहेणं-दो करण और तीन योग से नीचे मुताबिक प्रतिज्ञा करता हूँ
मणेणं वायाए काएणं-- मन, वचन और काया से
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