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३. खमासमण-सुत्तं । इच्छामि--मैं चाहता हूँ खमासमणो-हे क्षमाश्रमण-क्षमावन्त तपस्वी ! वंदिउं-चन्दन करने के लिये, जावणिज्जाए-अपनी शक्ति के अनुसार निसीहिआए-सब पाप कर्मों का त्याग करके मस्थएण वंदामि-मस्तकादि नमा कर वन्दन करता
४. सुगुरु को सुखशाता पृच्छा । इच्छकार-इच्छा करता हूँ सुहराइ-सुख से रात्रि में सुहदेवसो-मुख से दिवस में सुखतप-सुखपूर्वक तपस्या में शरीर निरायाध--शारीरिक पीड़ा से रहित हो ? सुखसंजमयात्रा--संयमयात्रा में मुख पूर्वक निर्वहो छो जी-निर्वाह करते हो, आप वरतते हो ? स्वामी शाता छे जी--हे स्वामिन् ! आपको मुखशाता है ? भात पाणीनो लाभ देजो जी--आहार, पानी आदि का
__ लाभ देने की कृपा करिये ।
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