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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६८) चक्रेश्वरी, पद्मावती, गोमुख और मणिभद्र आदि शासन के रक्षक देव हैं उनकी पूजा, आरति, उनके सामने चावलों का स्वस्तिक नहीं करना चाहिये और न धन-दौलत मांगना, सिर्फ जिनमूर्ति के दर्शन किये बाद अधिष्ठायक देवों से जयजिनेन्द्र कह कर चले जाना । पूजा, आरति तीर्थकर देवों की होती है, अधिष्ठायक देवों की नहीं । अब समझो कि जब देवदेवियों की उपासना करनेवाले चतुर्थस्तुतिक आचार्य और साधु इस प्रकार लिखते हैं तब अधिष्ठायक, अधिष्ठायिका और शासनरक्षक देव-देवियों को खमासमण देकर वन्दन करना, केशर से उनकी पूजा करना, उनकी आरति उतारना और उनके सामने चाबलों का स्वस्तिक करना यह कितना अज्ञानमूलक और भूलभुलैया का खेल है ?, और यह सर्व विशुद्ध जैनधर्म को कलंकित बनानेवाला है। खरतरगच्छ में भेरुं भी अविरति, विषयी, और कषायप्रिय देव हैं, अतः उसको खमासमण देकर वन्दन करना और उसकी पूजा, आरति आदि करना जैनों के लिये अनुचित ही समझना चाहिये । आत्मीय दृढ़ता न रहने पर यदि कमजोरी के कारण किसी कामना सिद्धि के निमित्त देवदेवियों के सामने नैबेध या श्रीफलादि चढ़ाना पडे तो बात अलग है । कामना सिद्ध होना न होना हाथ की बात नहीं है । लेकिन यह मार्ग कायरों का है, दृढ़धर्मी आत्माओं का नहीं है। -विजययतीन्द्रसूरि । For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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