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( १५८ )
'रिक उन्नति के लिये स्वरचित शास्त्रों में 'दीवालीपूजन' का जिस प्रकार विधि विधान बतलाया है उसीको उसी प्रकार समाराधन करने से विशेष लाभ होता है । जो अपने धर्म में विहित मार्ग को छोड़ कर विधर्मीय विधान का आचरण करते हैं, उन्हें लाभ के बजाय हानि ही होती है । अतः व्यावहारिक लाभ मर्यादा भी अपने धर्मशास्त्र के अनुसार ही करना चाहिये । जैनी लोग जैनविधि से दीवालीपूजन करें, इसीलिये यहाँ दीवालीपूजन विधि लिखी गई है ९२. प्रासङ्गिक प्रश्नोत्तरी ।
I
प्रश्न – सामायिक में पहले इरियावहि करना, या सामायिक दण्डकोच्चार के बाद ? |
उत्तर - अगर शास्त्रदृष्टि से विचार किया जाय तो सामायिक दण्डकोच्चार के बाद ही इरियावहि करना युक्तिसंगत है । क्योंकि सामायिक- विधान में आवश्यक सूत्रबृहट्टीका, हारिभद्रीय आवश्यकसूत्रटीका, यशोदेवसूरिकृतपञ्चाशक चूर्णि, विजयसिंहाचार्यकृत - श्रावकमतिक्रमणचूर्णि, श्रावकधर्म विधिप्रकरण, वर्द्धमानसूरिकृत - कथाकोश, श्रावकदिनकृत्य आदि प्रामाणिक सूत्र - ग्रन्थाकारीने सामायिक पाठोच्चार के बाद ही इरियावहि पडिक्कमण करना लिखा है । प्रश्न – सामायिक गुरुवन्दनपूर्वक करना, या गुरुवन्दन के बिना भी की जा सकती है ? | उत्तर- 'तिविहेण साहुणो णमिऊण पच्छा
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