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(१४७) २८ हास्य, रति, अरति परिहरु । दहिनी भुजा के नीचे पडिलेहते समय
३१ भय, शोक, दुगंच्छा परिहरूं। शिर और ललाटको पडिलेहते समय-- .
३. कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या परिहरु । मुख को पडिलेहते समय--
३७ ऋद्धिगारव, रसगारव, शातागारव परिहरु । छाती को पडिलेहते समय
४० मायाशल्य, नियाणशल्य परिहरु । ४२ क्रोध, मान परिहरु ( बांई भुजा के पीछे ) । ४४ माया, लोभ परिहरु ( दाहिनी भुजा के पीछे )। चरवला से बाँये पैर को पडिलेहते समय
४७ पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय की रक्षा करूं। चरवला से दाहिने पैर को पडिलेहते समय
५० वायुकाय, वनस्पतिकाय, सकाय की रक्षा करूं।
मुखवस्त्रिका और अंगपडिलेहण करते समय उक्त ५० बोलों को ध्यान में रख कर दिखलाये हुये स्थानों की पडिलेहण करना चाहिये। इनमें तीन लेश्या, तीन शल्य और चार कषाय, ये दश बोल श्राविकाओं को नहीं बोलना, शेष चालीस बोल बोलना चाहिये ।
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