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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२ ) ३ भोगाशातना-मन्दिर में बालक बालिकाओं को रमाना, स्त्री से संभोग करना, दृष्टिभोग या कुचेष्टा करना हास्य कुतूहलजनक प्रसंग खडे करना, सगाइ सम्बन्ध जोड़ना और तत्सम्बन्धी बात विचार की योजना गढ़ना और खान, पान या जीमन का आयोजन करना । ४ दुष्प्रणिधानाशातना-मोह के वश मनोवृत्ति दृषित करना, मानसिक, वाचिक, कायिक चाला करना या विकार भावना पैदा करना, और राग द्वेष के कारण ठंडे हुए कलहों की उदीरणा करके बैमनस्य उत्पन्न करना । ५ अनुचित्तवृत्ति आशातना-मन्दिर में लेणदेण या किसी कार्य की सिद्धि के लिये धरणे बैठना लंघन करना, रुदन या आत रौद्र ध्यान करना, राजकथादि विकथा करना, अपने गाय, भैंस, घोडे, उँट आदि मन्दिर की जगह में बांधना, अन्नादि, सुखाना पिसाना या संभराना गालियाँ देना, दुनियादारी की पंचायत करना, जूते सहित मन्दिर में जाना या उसकी हद में फिरना, शारीरिक अवयव उघाडे रखना, भोजन या जलपान करना, बीडी पीना और लघुनीत बडीनीत करना इत्यादि । जघन्य १०, मध्यम ४० तथा उत्कृष्ट ८४ आशातना भी हैं जो श्राद्धविधि आदि ग्रन्थों से समझ कर टालने की खप रखना चाहिये। For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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