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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACI (१०१) ( स्तुति ) कहना । फिर 'लोगस्स०, सव्वलोए अरिहंतचेहआणं० अन्नत्थ० ' कह कर एक नवकार का काउस्सग्ग कर, पार कर, दूसरी थुइ कहना । फिर 'पुक्खरवरदी, सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्ति०, अन्नत्थ. ' कह कर, एक नवकार का काउस्सग्ग कर 'नमोऽहत्सि०' बोल कर, तीसरी थुइ कहना । फिर 'सिद्धाणं बुद्धाणं' कह कर, बैठके 'नमुत्थुणं० , जावंति, इच्छामि खमा०, जावंत०, इच्छामि खमा ०, इच्छाकारेण स्तवन भणुं ? इच्छं, नमोऽर्हत्सिद्धा०' कह कर 'उवसग्गहरं० ' बोल कर 'जयवीयराय० ' कहना । फिर खमासमण पूर्वक 'भगवान् है' आदि पाठ बोलना, बाद में 'इच्छामि खमा० इछाकारेण देवसिअ पडिक्कमणे ठाउं ? इच्छं' कह कर दाहिना हाथ चरवला या आसन पर रख कर 'सव्वसस्सवि देवसिअ०' का पाठ कहना । फिर खडे हो कर करेमि भन्ते०, इच्छामि ठामि०, तस्स उत्तरी०, अन्नत्थं बोल कर अतीचार की आठ गाथा का, या आठ नवकार का काउस्सग्ग कर पार कर · लोगस्स०' कहना । फिर मुहपत्ति की पडिलेहन कर दो वांदणा देना । बाद में खडे हो 'इच्छाकारेण देवसिअं आलोउं ?, इच्छं आलोएमि जो मे देवसिओ' कह कर ' सात लाख' और ' अठारह ' पापस्थान का पाठ बोलना । फिर 'सव्वस्सवि देवसिअ०' कह कर वीरा For Private And Personal Use Only
SR No.020303
Book TitleDevasia Raia Padikkamana Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherAkhil Bharatiya Rajendra Jain Navyuvak Parishad
Publication Year1964
Total Pages188
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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