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[ 47 ] ..The Rājapraśniya Sūtra, the second Upānga of the Jaina Sacred Canons. It is accompanied by a Commentary called Tavārtha. The Ms begins Fol ib.
णमो अरिहंताण ........ उत्तरपुरथ्थिमे दिसीभाए अंचलसालवणे णाम चेतिए होथ्था पोराणे जाव पडिरूवे असोयवर पायवे पुढविसिला पूवयवतवया उवराइय गमेण नेया। The Ms ends Fol 73a.
संजमेण तवसा अप्पाण सावेमाणे विहरति णमो जिणाण जेयभयाण णमो सुयदेवयाए भगवइए णमोपणत्तीए भगवइए णमो भगवउ अरहउ । The Commentary begins Fol 1b.
देवदेव' जिन णम.........हि वै राजप्रश्नीय उपांग तेस्या माटै कहिये प्रदेशी राजा एह वै नामें केशीकुमार श्रमण मुनीश्वर पार्श्वनाथजीका सं+निया पासै जीवना अनेक प्रश्न कीधा। The Commentary ends Fol 73a.
वांदै नमस्कार करै वादीने नमस्कारे करीनै संयमै करी तपै करी आपणा श्रात्मा प्रति भावतो वि विचरै। सुधर्मा खामी कहि छै नमस्कार था जिन वीतराग भणी। DATE AND PLACE OF THE Ms.
ऋषि परमानंदलिखितं नागरमध्ये संवत् १८७३ आसोज सुदि ३ वुधे सूत्र ज्ञान चदलिख्यो संवत् १८७६ श्रासोज सुदि चद्रवासरे । Spiritual Genealogy of the Scribe.
श्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीहीरागरजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीरूपचंद्रजी श्रीश्रीपुज्याचार्य श्रीश्रीदेपागरजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीचैरागरजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीवस्तपालजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीकल्याणदासजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी भैरुदासजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीनेमीदासजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीआसकरणजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीवर्द्धमानजो श्रीश्रीपूज्याचार्यजी सदारंगजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीजीवनदासजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रीश्रीभोजराजजो श्रीश्रीपज्याचार्यजी श्रीश्रीहर्षचंद्रजी श्रीश्रीपूज्याचार्यजी श्रोश्रीलक्ष्मीचंद्रजी विजयराजो श्रीश्रीपूज्यजी कल्याणदासजी महर्षि श्रीश्रीरायसिंघजी पूज्यश्री
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