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[ 159 ] The Ms begins Fol ib.
श्रीसद्गुरुभ्यो नमः । धम्मो मंगलमुक्किट ठं। अहिंसा संजमो तवो। देवावि तं नमसंति । जेस्स धम्मे सया मणोग ॥ जहा दुमस्स पुप्फेसु । भमरो आविइ रसं । न य पुपर्फकिलामेइ। सो य पीणेई अप्पयं ॥२॥ एये ए समणा मुत्ता। जे लोए संति साहुणा विहंगमा व पुप्फेसु । दाणसणे भत्ते रया ॥३॥ वयं च वित्ति लव्भामो । नय कोइ उवहम्मई। अहागडेसु करी अंते। पुपफेसु भमरो जहा महुरे समाबुद्धा जे भवति अणिस्सिया नाणापिड़रया दंता। तेण वुच्चति साहुणो। त्ति वेमि ॥५॥ The Ms ends Fol 57a.
तत्थेव धीरो पडिसाहरिजा। आइन्न उखिप्पमिव खलीणं ॥१४ जस्सेरिसा जोगजिइदियस्स । धिईम उस पुरिसस्स निच्च। तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी । सो जीवई संयमजीविएणं ॥१५ अप्पा खलु सययं रखितव्वो। सव्विं दिए हिं सुसमाहिएहि । अरखिउ जाइ पहं उवेई । सुरक्खिउ सव्वदुहाण सुच्चई । त्ति वेमि ॥१६॥
वीयां चूला सम्मत्ता ॥ दस वेयालियसुय कठो सेम्मेत्तो । The Commentary begins Fol ib.
श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट मोटउं मंगली कछइ तेक्ख हवउ छइ । सर्वजीवनी दया । इदियनउ संवर। तप १२ भेद। देवता पुण तेह प्रतिइ नमस्कार करइ ॥ जेह नइ धर्म नइ विषइ सर्व । दामन प्रवर्त्तइ ।। जिम वृक्षणा फ ल नइ विषइ ॥ भ्रमर घोड़उ रस पीयइ पर॥ न ऊपजावई फल नइ किलामना अवइ ॥ तो भ्रमर प्रीणइ तृप्ति पमा+इ श्रापणा आत्मा प्रतिइ॥ इमए ॥ The Commentary ends Fol 57b.
तिहां जर साधु आपणा आत्मानइ पड़िसा हरइ पाछउ वालइ ॥ जिमा चीर्ण जाहिवंत सुंदर + + + तत्काल + + भालइ पाछउ वलइ + + +। जेह साधनाए हवा योग्य उत्तमनवचनकायनो व्यापार इद्रियजिता जेनइ तेह नह। तनइ सत्पुरुष साधुलोक नइ सदा सर्वदा ॥ तेह नइ लोक माहि प्रतिबुद्धजीवी भावधकी जागरूक हड तीर्थकर । ते जीवइ संयज जीवितव्यइ करिनइ ॥१५॥ DATE AND PLACE OF Ms.
संवत् १६७५ वर्षे चैत्रशदि द्वितीया अध्यवासरे वडत्तपागच्छे पासचंद
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