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[ 150 ] The Text ends Fol 66a.
धम्मे ठिड ठावयइ परपि ॥ निखम वज्जिज्ज कुसीललिंगं ॥ नया विहासं क हए जेस भिखू ॥२०॥ तं देहवास असुइ असासयं ॥ स याचए निच्च हियठिअप्पा । छिदित्तु जाईमरणस्स बंधणं ।। उवेइ भिका अपुणागमं गइ ॥ त्ति वेमि ।।२१।। The Commentary begins Fol 1a.
ॐ नमः ॥ ॐ श्रीवर्द्धमानस्वामिने नमः ॥ प्रणम्य श्रीमहावीर। गौतम गणितं तथा ॥ दिश वैकालिक सूत्रस्य वात्र्तिकार्थ करोम्यहम् ॥ श्रोदशवैकालिक सूत्रणा शब्दनो अर्थ कहै छइ ॥ राजगृहनामा नगरनो वासी ।। महाशुद्धिवंत शय्यंभव नामा भट्ट तेणइ ॥ श्रोप्रभवस्वामी समोपै दीक्षा लोधी हुती। तेहनो पुत्र मनक एहवै नामै पुत्र छै॥ ते मनक पुत्र शय्यंभव प्राचार्य समीपै प्रतिबोध पाम्यो । पछै शय्यंभव आचार्य समीपै दीक्षा लीधी ॥ तिवारै पछ' श्रीशय्यंभव प्राचार्य चउदै पूर्वमाहि उपयोग देईनै ॥ मनकपुत्रणा आउषाणो निरति कीधो ॥ तिवारै ते मनक पुत्रणो आउषो छमासनो दोधो॥ ते भनीथो+भणवै पारानाथा तेह वोते मनकपुत्र नइ काजै ॥ चउदै पूर्वमाहि थी जेसा धूने आराधवा योग्य आचारदेशा अध्ययनै + +॥ ते भनी दश अनै वैकालिक कहतादिवनै पाछिले विभागै दश अध्ययन पुरा कीधा ॥ ते भनी दशवैकालिक नाम ॥ ए प्रयनै विष ॥ आदि मांगलिक ॥१॥ मध्यमांगलिकं ॥२॥ छहलो मांगलि ॥३॥ ए त्तिण मंगलिक कह्या छ । तेमां हि पहिलो मंगलिक ॥ तदेवाधिदेवनै नमस्कारने अर्थे कह्यो ॥१॥ The Commentary ends Fol 66a.
ध० धर्मनइ विषई स्थित रह्यो छतो नि० दिक्षा लेई + + इारभादिकनी चेष्टा न० न करइ हासोइ इजालादिक कुचेष्टाइ'...भिक्षाभावनोफल कहते जे प्रत्यक्ष+दीषाना प्रमुष सरीर नो वास अशुचि असाश्वतो जानी नई स० सदाइ ममता नइ + + इकरी शरीरने + + इ सदाई मुक्तिनो साधन ज्ञानादिक तैहने विष स्थाप्यो छइ आपणो आत्मा जेणइ तेयती छि• छे दीनइ जन्ममरण नोवंधनइसा साधु पंचमहाव्रतधारी उ० पामइ ते साधु जिहां थ की पाछो आविवो नथो एहवी मोक्षगतित्ति० श्रीसुधर्माखामो प्रतै इम कह्यो हे जंजि ममै श्रीमहावीर देव समोपइ । COLOPHONS OF CHAPTERS of Text. Fol 3a. इति दुम्मपुपफिय अजझयणं सम्मत्त । Fol 6a. खुडायायारकहा अज्झयणं सम्मत्त ।
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