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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
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14232
On the title page is given:
" मन्दमन्दमलयानिलवाजे चूतचम्पककुलींवनमाज । कोकिलाकलकलीवनगाजे एछि शीघ्रं सखिलो लिबराज ||
""
गृहतिम् । शुभमस्तु ||
On the first title page is given:
" अनन्तव्रतकथा पूजन व्रत, ग्रहण, आरम्भशके १५९२ विरोधि. कृत संवत्सरे फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे दशम्यां श्री अनन्तसन्धिव्रतं
After end is seen:
BANSKRIT MANUSCRIPTS
On the last page is given:
शके 1594 परिधा विसंवत्सरे श्रावणमासे शुद्धपक्षे त्रयोदश्यां मन्दवासरे अरुणाचलसमीपे चण्डिमा इदं पुस्तकं नारायणपखमेन लिखितम् । शुभं भवतु || The Ms. is dated A. D. 1893 & 1594.
Des. No.
14261 B, L.
14262
14263
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14267
After the Colophon is seen:
"
अपराजित - शमीव्रतम् ॥
Coll. No.
""
At the end of the Colophon is given:सुब्रह्मण्येन लिखितम् "
66
"1
45
www.kobatirth.org
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T. 8.
यादृशं + विद्यते ॥
यज्ञेशाच्युत गोविन्द + नमोऽस्तु ते ॥
763
2764
2765
2766
3228
3429
989
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39
Subs
P.
31
APARĀJ (TA-SAMĪVRATAM.
Remarks.
21
1)
29
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Script.
De.
93
33
39
"
33
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Complete,
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