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BANSKRIT WAKULORITI
"8671 इति श्री रघुनाथेन भट्टपाधवमूनुना।
कृता निबन्धान्प्रेक्ष्याशु समूलाहिकपद्धतिः । Colophon: इति श्रीमदुपाध्यायभट्टमाधवात्मजभट्टरघुनाथ वर्णित आहिकप्रयोगः
संपूर्णः ॥ 18778. BL. 321 P. 9 De. Conplete:,, 18774
328 .. 19 , 18775 18776 18777
881
21: 18778 G. K. D. 3 , 18779 , 4 , 24 .... 18780 B. L. 3.4 , 88 , 18781 , 332 , 5 , R:-G. K. D. 18778 After the colcpiron is given:
'शके १५९४ परीधाविसंवत्सरे आश्विनमांसे कृष्णपक्षे प्रतिपद्या
शुभतिथौ भृगुवासरे इदं अह्निकाख्यं पुस्तकं - पुण्डरीकभट्टसूनुना लिखितम् ।। शुभमस्तु सर्वजगताम् । श्रीरेणुक्य । लेखकपाठकयोश्शुभं भवतु ।।
329 830
"
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18782 ॥ तन्त्रसारसङ्ग्रहव्याख्यानम् ॥ (शेषः) TANTRASARASANGRAHAVYAKHYANAM--- SESAH.
B. L. 6001 -P. 117 De. Gr-2950 - Incomplete. Beginning:
लक्ष्मीनारायणं पूर्णज्ञानानन्दादि सद्गुणम् ।। मन्त्रवर्णाभिधेयं च वन्दे ब्रह्मादिवन्दितम् । छलारिनरसिंहार्यसत्यनिध्याह्वयौ गुरू ॥ "विधामन्त्रोपदेष्टारौ वन्देऽभिमतसिद्धये ॥ २ ॥
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