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॥ स्वप्नोदितम् ॥ 7754 & 7755. SVAPNODITAM.
हरि ओम् ॥ देशिकानुग्रहोत्तुङ्गतरङ्गशिशिराशयः । निवसामि निजानन्दपरिपूर्णैकभूमनि ॥१॥ देशिकानुग्रहोत्तुङ्गमत्तमातङ्गमस्तकम् । आरुह्य विहराभ्यात्मपदे सपरसोज्ज्वले ॥२॥ देशिकानुग्रहोचङ्गागिरिशृङ्गमुपेयुषः । तृणवाति मे सर्व जगदत्यल्पमाततम् ॥ ३॥ देशिकानुग्रहोदारग्रहग्रस्तात्मवानहम् । न किंचिदपि जानामि जगदेतचराचरम् ॥ ४ ॥ देशिकानुग्रहोदारवेत्रोदस्तमनोप्रहः । विजानामि जगत्सर्वमात्ममात्रतयाधुना ॥५॥ देशिकानुग्रहोदारतराणिप्रसरोवे । स्वानन्दैकरवं वीक्षे समुल्लसितमद्भुतम् ॥ ६ ॥ देशिकानुग्रहोदारतुषारकिरणोदये । आर्यमान्तराम्भोजमुभिद्रमभवन्मम ॥७॥
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