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A DESORIPTIVE OATALOGUE OF
श्री गणेशाय नमः ॥
वटतरुनिकटनिवासं
पटुतरविज्ञानमुद्रित कराब्जम् ।
कंचन देशिकमाद्यं
कैवल्यानन्दकन्दलं वन्दे ॥ १ ॥
निरवधिसंसृतिजलनिधि
निपतितजन तारणस्फुरन्नौकाम् |
परमतभेद न घुटिकां
परमशिवेन्द्रार्थपादुकां नौमि ॥ २ ॥
देशिक परमशिवेन्द्रा
देशवशोहुद्ध दिव्यमहिमाहम् ।
स्वात्मनि विश्रान्तिकृते
सरसं प्रस्तौमि किंचिदिदम् || ३ ||
इति गुरुकरुणापाङ्गात् आर्याभिर्ह्यधिकषष्टिसंख्याभिः ।
निरवद्याभिरोचं
निगमःशिरस्तन्त्र सारभूतार्थम् ।। ६२ ।।
गदितमिममात्मविद्या
विलासमनुवासरं स्मरन्विबुधः ।
परिणतपरमात्मविद्यः
प्रपद्यते सपदि परमार्थम् ॥ ६३ ॥
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