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वादिसदेत
ग
लुम्बसि
शृङ्ख
कर्क्षन्ती
शकः
अक्षेपो
वित्ते
हारा
कलाडि
ही
नारी
श्मयः
कृपे
योगिनां
निरन्तरोपा
सोप
जलधि
भूर्ति
समुङ्ग
दधिषं
खरणमयित
निपुण
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वादितदेतर्हि
गर्व
लुम्पसि
भृङ्ग
कर्षन्ती
शठः
आक्षेपो
चिचे
हार
कलङ्कि
ही
नाग
रश्मयः
कृषे
योगितां
निरन्तरोप
स्वोप
जलधिः
भूमिं
समद्र
दधि
सरणमेत
निपुण