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THE SANSKRIT MANUSCRIPTS.
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End:
सुदधिपरगावशाचमने ९ चक्र केतुविधि प्रकल्पते(?) दशरेभुनवागृहं विदत्ते एकाशीतिपदै यथोचितम्(!) ..
No. 13471. रव्यादिज्यावाक्यम्.
RAVYĀDIJYĀVĀKYAM. Pages, 13. Lines, 24 on a page.
Begins on fol. 21a of the MS. described under No. 13402. Gives the sines for determining the position of the Sun and the planets. Beginning:
रव्यादीनां ज्यावाक्यानि लिख्यन्ते-- रविज्या
जनेन-१. सत्येन-२. मुखेन-३. लिङ्गेन-४. येवेन. ५. मावेन-६ समेन७. वर्तनम्-८. रसेन-९. हासेन-१०. मदेन-११. योधनम्-१२. सुधेन- १३. रत्नस्य-१४. सुनीपा- १५. रूपकम्-१६. तटस्य-१७. धान्यस्य-१८. खुरस्य१९. भद्रकम्-२०. End:
तरङ्गी-१७. गङ्गाम्बु-१८. जलाम्बु-१९. कुम्भगी-२०. विमङ्गी-२१. शोभाङ्गी-२२. भवाङ्गी-२३. लीढगु-२४. तीरुहः शनिः ॥ Colophon:
रव्यादीनां ज्यावाक्यं संपूर्णम् ॥
उपरि शिष्टज्याशुभाङ्गम्-१. नागोसौ-२. मान्यं पुण्यम्-३. अनामयम्-४.
भृगुगुरुबुधशनिभौमाशशिन(व)मांशकाः. भृगुर्नवभिः कलाशैश्यः. गुरुरेकादशभिः. बुधस्त्रयोदशभिः. मन्दः पञ्चदशभिः. भौमस्सप्तदशभिदृश्यः.
No. 13472. रव्यादिज्यावाक्यम्.
RAVYĀDIJYĀVĀKYAM. Pages, 16. Lines, 70 on a page.
Begins on fol. 28a of the MS. described under No. 13401. Complete. Samo work as the above.
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