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THE SANSKRIT MANUSCRIPTS.
4541
Complete.
Similar to the above. Beginning :
अघोरास्त्रम्-. ओं हां हां अघोरास्त्राय हुं फट् नमः । पाशुपतास्त्रम् -
ओं श्री पशुं पाशुपतास्त्राय हुं फट् नमः । ओम् अघोरवीरभद्र उग्ररूपाय आचन्द्रार्कखचो(खेच)रशङ्कराय नागयज्ञोपवीताय अनेकग्रहनाशाय ब्रह्मविष्णुरुद्रग्रहबन्धन इन्द्रग्रहबन्धन अग्निग्रहबन्धन यमग्रहबन्धन नैरतग्रहबन्धन वरुणग्रहबन्धन. End:
वीरग्रहबन्धन शूरग्रहबन्धन सजातिपिशाचग्रहबन्धन . . . . . . . . . . अघोरवीरभद्राय हुं फट् स्वाहा ||
___No. 5846. अघोरास्त्रसहस्राक्षरीमन्त्रः.
AGHÖRĀSTRASAHASRĀKŞARIMANTRAĦ. Pages, 10. Lines, 6 on a page.
Begins on fol. 46a of the MS. described under No. 2421. Complete.
This Mantra is supposed to have the effect of destroying one's enemies and of driving away evil spirits Beginning:
ओं नमो भगवते अघोरास्त्राय सूर्यकोटिसमप्रभाय दंष्ट्राकराळवदनाय हां ही हूं हैं ह्रौं ह्रः ब्रह्मराक्षस हन हन वज्रदण्डेन सर्वशत्रून् नाशय नाशय सर्वग्रहोच्चाटनाय हुं फट् । End:
दह दह दह दह त्रासय त्रासय त्वरित त्वरित बन्धय बन्धय आनन्दाय स्वाहा ॥ Colophon:
अघोरास्मसहस्राक्षरी सम्पूर्ण(D) ।
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