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THE SANSKRIT MANUSCRIPTS.
4527
End:
वम वम व्योमकेश ईशान्यदिशं बन्धय बन्धय मां रक्ष रक्ष बन्ध बन्ध पुरहर । भूर्भुवस्स्वराद्युपरि लोकेषु सर्वभयेभ्यो मां रक्ष रक्ष घातय धातय दनुजान्तक । अतलादिसप्तलोकेषु सर्वभयेभ्यो मां रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा । अस्त्रायुतदिशं बन्धय बन्धय मां रक्ष रक्ष अन्तरं बन्धय बन्धय आकाशं बन्धय बन्धय मां रक्ष रक्ष एवं क्रमेण दिग्बन्धनानि कुर्यात् ॥
No. 5821. अघोरनारसिंहोच्चाटनमन्त्रः. AGHORANĂ RASIMEOCCĀTANAMANTRAH.
Page, 1. Lines, 9 on a page.
Begins on fol. 86a of the MS. described under No. 21. Complete.
This Mantra is supposed to have the effeot of foiling one's enemies.
Beginning:
ओं नमः अघोरनारसिंहाय उग्ररौद्रभीमपराक्रमहुताशनाय हुम्फट् विड विड् कालाग्मिवीरभद्राय हुं, बडवामिकालरुद्राय हुं, सर्वामिकालभैरवाय हुं फट् फट् हुं, कृतविजयशौर्यबलाय हुं, सहस्रभुजशङ्खचक्रधराय हुम् । End:
त्रिपुरबलं क्षोभय क्षोभय नाशय नाशय जम्भय जम्भय स्तम्भय स्तम्भय मारय मारय शोषय शोषय दानवान्तककुलिशरूपाय उपाय उग्राय ज्वालाय ज्वालाय योगाय योगाय लक्ष्मीनृसिंहाय सर्वलोकरक्षणाय हुं फट् स्वाहा ||
380-A
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