________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SANSKRIT MANUSCRIPTS, 315 ज्वराभिभूता या नारी रजसा च परिप्लुता / कथं तस्याः भवेच्छौचं शुद्धिः स्थात् केन कर्मणा / / चतुर्थेऽहनि संप्राप्त स्पृशेदन्या तु तां स्त्रियम् / सा सचेलावगाह्याप्सु पुनः खात्वा तु तां स्पृशेत् // दशद्वादशकृत्वो का आचमेच्च पुनः पुनः / / अन्ते च वाससस्त्यागस्तस्माच्छुद्धा भवेत्तु सा // दद्याच्छक्त्या ततो दानं पुण्याहेन विशुध्यति / Colophon : Author: Remarks This commentary is composed in verse to facilitate conning. // स्मार्तप्रायश्चित्तविमार्शनी // No. 134. SMARTAPRAYASCITTA VIMARSINI. .C.O. L. No. 947. Substance-Paper. Siz8-11" x 9". Pages-158. About 20 lines per page and 24 letters per line. Script-Devanagari. No. of Granthas--2370, Owner-C. O. Subject--Same as No. 128. Beginning: बोधायनं च मन्वादीनाश्वलायनमेव च / प्रणम्य क्रियते स्मार्तप्रायश्चित्तविमर्शिनी। तत्र प्रथममग्निनाशकदोषा उच्यन्ते / तत्र बोधायनो यज्ञ-. For Private and Personal Use Only