________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir DESCRIPTIVE CATALOFJE OF MANUSCRIPTS. 101 कविकङ्कण पण्डितः प्रोत्यासहितस्तस्य सुतोऽर्थ कौमुदीम् / तनुने फिल शुद्धिदीपिका खिलास्वार्थ विवेचनाविधिर / / End - सुविस्तरे ज्योतिषि यन्तोद्धा समस्तकम व्यवहार दर्शिकाम् / श्री श्रीनिवासेन समीक्षितामिमां हे मत्सराः पश्यथ शुद्धिीपिकाम् // इति श्री महत्तापनीय पण्डिा श्री श्रीनिवास विरचितायां शुद्धि दीपिकायां यानानिणयो नामाष्टमोऽध्यायः। इति श्री गोविन्दानन्द कविकणाचार्य कृतायां शुद्धिदीपिकायां टीकाविवरण समातम् / समातोश्य' ग्रन्थः / No colophon. 180 Dh. 8. शुद्धि दोपिका By. श्रीनिवास, with Oriya prose translation. Substance-palm-leaf, No. of folia 108 (16.2"X1.3") Character-Oriya, Date of copy is the time of Jadunathe Bbanja of Mayurabhanja, in 1852 or 18.13 A.D. Complete Conditionnot good, worm-eaten. Find-spot- Baripada Museum, Dt. Mayurabhanja. Orissa. Beginning- श्री गणेशाय नमः, श्री सूर्याय नमः / तृष्णातरङ्ग दुस्तर संसाराम्बोधि लधने तरणिः / उदयवसुधाधरारुणमुकुटमणिः पातु व स्तरणिः / / Oriya transletionतरणि ये सूर्य से तुम्भमानङ्क रक्षा करन्तु / गन्थ आद्य मङ्गलनिमित्ते कल्याण कहला। सूर्य्य केमन्त,उदयपर्वतर, अरुणवर्ण, मुकुटमणि अटह। तरणि बोलि सूर्य, कहि। नौकाकहि ! पुणि से सूर्य केसान, तृष्णा ये आशा से तरङ्ग हेला, तेणु करि दुस्तर होहलसार ये समुद्र तहिंकि तरणि होइले / For Private and Personal Use Only