________________ Shri Maheri Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri G uendir रा.प. 惡杂*於**** बृ.वे. पत्राणिदूर्वाकौशेयमेवच // 5 // विष्णुक्रांतमरुबकंकारुलंदमनंतथा॥ औशोर जातिकुसुमकुदंचैवकुरुंडकम् // 6 // शमिंचंपकदंबंचचूतपुष्पंचमाधवीं // पुन्नागंबकुलंनागकेशराशोकमल्लिकं॥ 7 ॥शतपत्रंचहारीतंकरवीरंचवर्जयेत॥ in नीलोत्पलंशत्पलंचसंध्यावतंचकैतकम् // 8 // घटजलस्थंपनचसर्वाणिज लजानिच // तत्तत्कालोद्भवंपुष्पंगृहीत्वागृहमाविशेत् // 9 // इतिपुष्पग्रहणवि धिः॥ अथचरणोदकविधिः॥उदकंचंदनंचक्रशंखंचतुलसीदलंघंटानादंशि लाताम्रमष्टाभिश्चरणोदकम् // // // तथाच हारीते॥ ॥गंडकीगोमतीचक्र तुलसीताम्राजनं // घंटानादंशंखतोयमष्टमंचानुलेपनम् // 2 // सर्वेषामप्य लाभेतुशंखएकोविशिष्यते // शंखोदकंसदापूतमतिप्रियतमंहरेः॥३॥ पंचसं स्कारयुक्तानांवैष्णवानांविशेषतः॥ग्रहार्चन विधानेतुशंखघंटांविवर्जयेत् // 4 // ***杂杂杂杂杂杂杂杂杂 For Private And Personal