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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ६१ ) I इस प्रश्न का है । कारण स्पष्ट हैं - भावेश की भाव पर दृष्टि भाव फल को पुष्ट करती है । भावेश की भाव पर दृष्टि न होने पर भाव कमजोर रहता है । यही कारण है कि पंचमेश की पंचम स्थान पर दृष्टि न होने मात्र से गर्भ की सुरक्षा एवं पुष्टि संदिग्ध हो जाती है । दूसरी बात यह है कि पाप ग्रह किसी भी भाव में बैठकर उसके फल का विनाश करता है । अतः पंचम स्थान में पापग्रह के स्थित होने से गर्भपात होना स्वाभाविक है । यदि प्रश्न कुण्डली में इसके विपरीत स्थिति हो – अर्थात पंचमेश की पंचम स्थान पर दृष्टि हो और शुभ ग्रह पंचम स्थान में बैठा हो तो गर्भपात नहीं होता, अपितु गर्भ पुष्ट होता है । प्रश्नशास्त्र के प्रायः सभी महत्वपूर्ण ग्रन्थों विस्तार से विचार किया गया है । नीलकण्ठी में कहा गया है कि यदि प्रश्नकाल में द्वादशेश पाप ग्रह हो; वह सूर्य के साथ होने से दग्ध हो, आपोक्लिम स्थान में स्थित हो और पाप ग्रहों से युतदृष्ट हो तो शिशु उत्पन्न होकर मर जाता है या गर्भपात हो जाता है ।' एक और महत्वपूर्ण योग का वहां उल्लेख मिलता है यदि प्रश्न कुण्डली में शुक्र और सूर्य आठवें स्थान में स्थित हों और पापग्रह द्वितीय, अष्टम और द्वादश स्थान में स्थित हो तो प्रश्नकर्ता के सामने उसकी सभी सन्तानें मर जाती हैं और उसके दीर्घजीवी सन्तान नहीं होती । संकेत निधि में गर्भपात के निम्नलिखित योग बतलाये गये हैं : १. यदि प्रश्नलग्न में मंगल के साथ शनि बैठा हो तो गर्भपात होता है और २. चन्द्रमा १. क्रूरश्चेदन्त्यपतिर्दग्धश्चापो क्लिमे युक्तः । क्रूरैस्तु जातमात्रो म्रियते बालोऽयवः गर्भे । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020128
Book TitleBhuvan Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
PublisherRanjan Publications
Publication Year1976
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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