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( ७१ ) के स्वामी के विनष्ट होने पर भावों के फल का दिग्दर्शन कराया है। जिस भाव का स्वामी विनष्ट होता है उस भाव से सम्वन्धित विषयों में उपद्रव, अवरोध या नाश जैसा अशुभ फल कहना चाहिए। जैसे यदि लग्नेश विनष्ट ग्रह हो तो लग्न से विचारणीय विषयों. 'अंग, जाति, वर्ण आदि पर अशुभ प्रभाव कहना चाहिए। इस स्थिति में शरीर रोग युक्त, अंगहीन, कुरूप, क्रान्तिरहित एवं म्लेच्छादि जाति के लोगों जैसा हो सकता है। इसी प्रकार धन, भ्रातृ आदि भावों के स्वामी ग्रह के विनष्ट होने पर उन भावों के विचारणीय विषयों पर अशुभ प्रभाव की कल्पना विद्वानों को स्वयं कर लेनी चाहिए।
भावेशों के विनिष्ट होने पर जो फल बार-बार अनुभव में आया है, वह पाठकों की जानकारी के लिए लिखा जा रहा है। यदि लग्नेश विनष्ट हो तो व्यक्ति प्राय दुर्बल होता है और उसका कद छोटा होता है। धनेश के विनष्ट होने पर बचत नहीं हो पाती। तृतीयेश के विनष्ट होने पर व्यक्ति आलसी होता है और भाई से उसका मतभेद रहता है । चतुर्थेश विनष्ट हो तो आजीवन किराये के मकान में रहता है। पञ्चमेश के विनष्ट होने पर गर्भपात तथा पुत्र से मतभेद और सप्तमेश के विनष्ट होने पर पत्नी से मतभेद या सम्बन्ध विच्छेद (तलाक) होजाता है। भाग्येश विनष्ट हो तो प्रगति में बाधायें और दशमेश विनष्ट हो तो व्यवसाय में कई बार परिवर्तन होता है । लाभेश के विनष्ट होने पर आर्थिक स्थिति डावांडोल और व्ययेश के विनष्ट होने पर रहन सहन का स्तर निम्नतर होता है। यह फल हमने विनष्ट ग्रह के न्यूनतम अशुभ प्रभाव के आधार पर अनुभव किया है।
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