SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ६१ ) योग पूर्णत: बनता है । अतः पृच्छक को शीघ्र सन्तति लाभ होगा । एक अन्य ने विवाह का प्रश्न मेष लग्न में किया । ग्रहस्थिति के अनुसार कुण्डली बनायी गयी । इस कुण्डली में लग्नेश मंगल की कार्यभाव (सप्तम) पर पूर्ण का २ us दृष्टि है और कार्येश शुक्र की लग्न पर पूर्ण दृष्टि है तथा चन्द्रमा की भी शुक्र पर पूर्ण दृष्टि है । अतः यहाँ पूर्वोक्त योगों में द्वितीय योग पूर्णरूपेण घटता है । इस स्थिति को देखकर सम्पन्न एवं कुलीन परिवार की सुन्दर कन्या से विवाह होगा यह फलादेश किया गया । ६ ३ ७ Ac ४ १ www.kobatirth.org १२ मं ११ रा चं ९ एक सुशिक्षित किन्तु बेरोजगार युवक ने वृष लग्न में नौकरी का प्रश्न किया । उसकी प्रश्न कुण्डली इस प्रकार है : इस कुण्डली में लग्नेश शुक्र और कार्येश शनि की परस्पर दृष्टि है तथा चन्द्रमा की शुक्र पर पूर्ण दृष्टि है । यहाँ तृतीय योग के अनुसार अच्छे पद पर शीघ्र सरकारी नौकरी लगने का फल बतलाया Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० ५ ४ म १२, ६ For Private and Personal Use Only शु १० रा ११ गया, जो परीक्षा की कसौटी पर खरा उतरा । ग्रन्थकार ने अपने दीघकालीन अनुभव और शास्त्रीय ज्ञान के आधार पर कार्यसिद्धि के इन ३ योगों का प्रतिपादन किया है । इन योगों के आधार पर फलादेश में एक विलक्षण चमत्कार आ जाता है ।
SR No.020128
Book TitleBhuvan Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
PublisherRanjan Publications
Publication Year1976
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy