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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्दारार्कस्य पुष्पेण समद्युतिरनुष्णगुः । कविरत्यन्त्य धवलः फणी कृष्णः शनिस्तथा ॥३३॥ अर्थात् मंगल का लाल वर्ण, गुरु का सुवर्ण के समान पीत, बुध के तोते के पंख के सदृश हरा, सूर्य गौर, चन्द्रमा का मन्दार (पारिजात) के वृक्ष की तरह शुभ्र, शुक्र का अति धवल तथा राहु एवं शनि का काला वर्ण है। __भाष्य : नष्ट पदार्थ या व्यक्ति के वर्ण का निश्चय करने के लिए यहाँ ग्रहों के वर्ण (रंग) का विचार किया गया है। सूर्यादि आठ ग्रह प्रसिद्ध सात रंगों के प्रतिनिधि हैं। अतः शनि एवं राहु दो ग्रहों का काला रंग और शेष छ: ग्रहों के अपनेअपने विभिन्न रंग माने गये हैं। सूर्य का धवल वर्ण चन्द्रमा का शुभ्र एवं शुक्र का अति धवल वर्ण हम अपनी आँखों से देखते ही हैं। इसी प्रकार अन्यान्य ग्रहों की रश्मियों में भी उनके रंगों की छटा दूरदर्शकयन्त्र के वर्णच्छायापटल पर दिखलाई देती है। प्रश्नकुण्डली में जो ग्रह बली होकर लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो, उस ग्रह के वर्ण के अनुसार व्यक्ति या पदार्थ के रंग का निर्णय करना चाहिए। उदाहरणार्थ, यदि प्रश्नलग्न से सूर्य का सम्बन्ध हो तो गौर वर्ण, चन्द्रमा का सम्बन्ध हो तो गोरा या रेशम के समान शुभ्र वर्ण और शुक्र का सम्बन्ध हो, तो अत्यन्त धवल वर्ण कहना चाहिए । अवनीशो दिनमणिस्तपस्वी रोहिणीप्रियः । स्वर्णकारः क्षितेः पुत्रो ब्राह्मणो रोहिणी भवः ॥३४॥ वणिग्गुरुः कविर्वैश्यो वृषलः सूर्यनन्दनः । सैं हिकेयो निषादश्च सर्वकार्येषु संमतः ॥३५॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020128
Book TitleBhuvan Dipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmaprabhusuri, Shukdev Chaturvedi
PublisherRanjan Publications
Publication Year1976
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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