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( ३३ ) किया गया है। गुरु और शुक्र द्विपद संज्ञक हैं। प्रश्नकाल में यदि ये बलवान् होकर लग्न में बैठे हों या देखते हों, तो जीव द्विपद होता है । इन पर सत्त्व, रज तथा तमोगुण वाले ग्रहों का प्रभाव होने पर देवता, मनुष्य और राक्षस का निर्णय करना चाहिए। ___ मंगल और सूर्य चतुष्पद संज्ञक है । प्रश्नकुण्डली में यदि इन दोनों का लग्न से सम्बन्ध हो तो जीव चतुष्पद होता है। साथ ही इन ग्रहों पर अन्य पाप ग्रहों का प्रभाव होने से हिंसक पशु और शुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर पालतू पशु जानना चाहिए। बुध और शनि पक्षी संज्ञक है। यदि प्रश्न लग्न से इनका सम्बन्ध हो तो जीव पक्षी होता है। इनकी जलचर और स्थलचर राशियों में स्थिति के अनुसार जलचर एवं स्थलचर पक्षी कहना चाहिए। चन्द्र और राहु सरीसृप संज्ञक हैं। इनका लग्न से सम्बन्ध होने पर जीव सरीसृप होता है। इन पर पाप ग्रहों के प्रभाववश विषैले कीट और शुभ ग्रहों के प्रभाववश विषरहित कीट का निर्णय करना चाहिए।
विप्रौ शुक्रगुरु क्षत्री कुजाको शुद्र इन्दुजः।
इन्दुवैश्यः स्मृतौ म्लेच्छौ सैहिकेयशनैश्चरौ ॥३०॥ अर्थात् शुक्र, और गुरु ब्राह्मण, मंगल और सूर्य क्षत्रिय, बुध शूद्र, चन्द्रमा वैश्य तथा राहु और शनि म्लेच्छ कहे गए हैं।
भाष्य : पूर्वोक्त रीति से जीव द्विपद एवं मनुष्य है, यह निश्चित हो जाने पर, वह किस वर्ण या जाति का है, यह निर्णय यहाँ करेंगे। ब्राह्मणादि चार वर्षों में मलेच्छ (चाण्डाल)। को सम्मिलित कर यहाँ पाँच जातियाँ मानी गयी हैं।
ज्योतिषशास्त्र जन्म के आधार पर वर्ण-व्यवस्था का पक्ष
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