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( १६४ ) होती है । अन्य आचार्यों का भी प्रायः यही मत है।
योगेऽस्तित्वविधायके हिमरुचिर्नीचे विनष्टोऽवि वाs, मावस्यानिकट स्थितोऽपि कथितः प्राज्ञः प्रमाणं तथा। लाभे चन्द्रयुगीक्षणे न भवतः सौम्यस्यते स्तस्तदा,
वर्षेऽन्यत्र निधिग्रहाय सुधिया कार्यः प्रयत्नो महान् ॥१६६।। अर्थात् निधि मिलने का योग होने पर यदि चन्द्रमा नीच, विनष्ट या अमावस्या के आसपास हो तो प्रयास नहीं करना चाहिए। लाभ स्थान पर चन्द्रमा की दृष्टि या युति न हो किन्तु शुभ ग्रह की युति दृष्टि हो तो एक वर्ष के बाद निधि निकालने का प्रयास करना चाहिए। __भाष्य : पूर्वोक्त श्लोक में वर्णित निधि होने के योग से पहले निधि का अस्तित्व निश्चय कर तब धन निकालने का प्रयास करना वास्तविकता में व्यावहारिक पक्ष है। किन्तु प्रश्नकुण्डली म यदि चन्द्रमा नोच राशि हो, या क्रूराक्रान्त, क्रूरयुत, क्रूर दृष्ट अथवा अमावस्या के निकट अस्तंगत हो तो धन निकालने में सफलता नहीं मिलती। कारण यह है कि चन्द्रमा चतुर्थ भाव का कारक और कार्यसिद्धि का बीज कहा गया है । अतः इसके दुर्बल या पाप प्रभावयुक्त होने पर चतुर्थ भाव का प्रमुख फल (निधि) मिलना सर्वथा असम्भव है। इसी प्रकार लाभ स्थान चन्द्रमा से युत दृष्ट न हो किन्तु शुभ ग्रहों से युत दृष्ट हो तो भी तुरन्त निधि नहीं मिलती। अतः एक वर्ष बाद खुदाई आदि प्रयास करने को कहा गया है। उदाहरणार्थ कुण्डली देखिये :
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