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( १० ) लाभादयो दिनेडतीते फलं मासस्य लग्नपात् । द्रेष्काणादेः फलं सर्व दोषज्ञानं महाद्भुतम् ॥६॥ दिनचर्या नृपादीनां गर्भेऽस्मिन् कि भविष्यति ।
षत्रिंशदस्मिन्द्वाराणि ग्रन्थे भुवनदीपके ॥१०॥ प्रश्नशास्त्र के सुविख्यात ग्रन्थ इस भुवन दीपक में १७० श्लोकों द्वारा विषयवस्तु का विवेचन किया गया है। विषय प्रतिपादन में पाठकों की सुविधा का ध्यान रखते हुए, समस्त विवेचनीय विषय ३६ द्वारों में विभक्त किया गया है। उक्त । श्लोकों में विषयानुक्रमिणका की रीति से ३६ द्वारों में निरूपित विषय वस्तु का वर्णन इस प्रकार है।
--भाष्यकार अर्थात् प्रथम द्वार में मेषादि द्वादश राशियों के स्वामी; द्वितीय द्वार में ग्रहों की उच्च एवं नीच राशियाँ ; तृतीय में ग्रहों के परस्पर मित्र एवं शत्रु; चतुर्थ में राहु की राशि, उच्च एवं नीच; तथा पंचम द्वार में केतु की स्थिति का निरूपण किया गया है; छठे द्वार में ग्रहों का स्वरूप; सप्तम में द्वादश भावों के विचारणीय विषय; अष्टम में इष्ट काल का निर्णय एवं नवम द्वार में लग्न का विचार किया गया है। दशम द्वार में विनष्ट ग्रह का विचार; एकादश में चार राजयोगों का निरूपण'; द्वादश में लाभादि का विचार; एवं त्रयोदश द्वार में लग्नेश की स्थिति का फल है ; चौदहवें द्वार में गर्भ को स्वस्थता, पन्द्रहवें में गर्भिणी का प्रसव काल (ज्ञान); सोलहवें में युगल (जुड़वाँ) बच्चों की उत्पत्ति ; एवं सत्रहवें द्वार में गर्भ के मासों की संख्या का विचार है; अठारहवें द्वार में रखैल या विवाहिता स्त्री का विचार; उन्नीसवें में विषकन्या (कुलघातिनी) का निरूपण; बीसवें में
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