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दूवा
झूमना।
दूना
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दूसरा, दूसर, दूसरी दूना-वि० दे० (सं० द्विगुण) दुगुना, दोगुना, । दूरवीक्षण (यंत्र)--संज्ञा, पु० यौ० (सं०) दोचन्द, दुचंद (७०) दून (दे०) दूनो दूरबीन, दूर दर्शक यंत्र । (व.)।
दूरस्थ-वि० (सं०) अति दूर रहने वाला। दूनौं -वि० दे० (हि. दो) दोनों। दूरी-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० दूर + ई-प्रत्य०) दूब-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० दूर्वा) एक घास। दूर, दूरत्व, दूरता, अंतर, फ़ासिला । “यहि दूबदू-क्रि० वि० दे० (हि. दो या फ़ा० रूबरू) बिधि प्रभुहि गयो लै दूरी',-रामा० ।
संमुख, आमने-सामने, समक्ष । | दूर्वा-संज्ञा, स्त्री० (सं०) एक घास, दूब । दूबर-दूबरा, दूबरो -वि० दे० (सं०दुर्बल) दलन-संज्ञा, पु. दे. (सं० दोलन) दोलना, दुबला, पतला, निर्बल । “चन्द दूबरो-कूबरो, दुलना, डोलना, झोंका खाना, झूमना। तऊ नखत तें बाढ़"--.।
दूलभ-वि० (दे०) दुर्लभ (सं०)। दूबिया-संज्ञा, स्त्री० (दे०) हरा रंग, दूब के दूलह-दूल्हा-संज्ञा, पु० दे० (सं० दुर्लभ ) से रंगवाला।
दुनहा, वर । “दूल्हा राम रूप-गुन-सागर" दूबे-संज्ञा, पु० दे० (सं० द्विवेदी) द्विवेदी, दुबे। -रामा ।
भर - वि० दे० (सं० दुर्भर) कड़ा, कठिन। दुल्हन - संज्ञा, स्त्री० (दे०) दुलहिन, दुलही। दूमना-अ० क्रि० दे० (सं० द्रुम) हिलना, दूषक-संज्ञा, पु० (स.) निंदक, कलंक या
अपराध लगाने वाला। "गुरु-दूषक बात न दूरंदेश- वि० (फा०) अनसोची, दूरदर्शी ।। कोपि गुनी'-रामा। (संज्ञा, स्त्री० दूरदेशी)।
दुषण-संज्ञा, पु० (सं.) बुराई, दोष, श्रवदूर-क्रि० वि० (सं०) जो समीप या निकट न । गुण, ऐब लगना, एक राक्षस | दृषन (दे०) हो । लौ०"दूर के बोल सुहावन लागत"। "खरदूषण मो-सम बलवन्ता"-रामा० । मुहा०-दूर करना--अलग या पृथक 'दोष-रहित दूषण-सहित"-- रामा० ।। करना, रहने न देना, नाश करना, मिटाना। दूषना-8-स० कि० दे० (सं० दूषण) दोष दूर भागना या रहना--बहुत बचना, या ऐब लगाना, कलंकित करना, दूखना । समीप न जाना । दूर होना-अलग दूषणीय-वि० (सं०) दोष या कलंक लगाने हो जाना, हट जाना, मिट या नष्ट हो योग्य, दृषलीय (दे०)। जाना । दूर की बात-कठिन बात, महीन दृषाना स० क्रि० दे० (सं० दूषण) कलंक विषय। दूर की कौड़ी उठाना (नाना) या ऐब लगाना, दोषारोपण करना ।
-अल्प फलप्रद कठिन कार्य करना, नई दूषित-वि० (सं०) दोषी, कलंकी, बुरा । खोज करना।
दृष्य-वि० (सं०) दोष लगाने योग, निंददूरता-संज्ञा, स्त्री० (सं०) दूरत्व, दूर काभाव। नीय, तुच्छ । दूरत्व-संज्ञा, पु० (सं०) दूरता, दूरी। दृष्टा-वि० (सं.) निन्दनीय, तुच्छ, दोष दूर-दर्शक-वि० यौ० (सं०) बहुत दूर तक लगाने के योग्य ।
देखने वाला, अग्रसोची, दूरदर्शी । दूसना-स० कि० दे० (सं० दूषण) दोष या दरदर्शक-यंत्र-संज्ञा, पु० यौ० (सं.) दूरबीन । कलंक लगाना, निन्दा करना । दूरदर्शिता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) दूरदेशी। दूसरा, दूसर, दूसरो (७०)-वि० दे० (हि. दूरदर्शी-वि० यौ० (सं०) अग्रसोची, दूरंदेश! दो) द्वितीय, अन्य, अपर, गैर, दुस्तर दूरबीन-संज्ञा, स्त्री० (फा०) दूरदर्शक यंत्र। दुसरा (ग्रा.) स्त्री०-दूसरी । “मेरे तो दूरवर्ती-वि० (सं०) जो बहुत दूर हो। गिरधर गोपाल दुसरो न कोई"--मीरा ।
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