________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ४ ) कि विशाल भाषा-क्षेत्र में विद्वानों ने प्रथम से मार्ग बना रखे हैं और भाषा-सदन से शब्द-रत्न चुन कर कोषों में संचित कर लिये हैं, उन्हीं के आधार पर मैं भी इस कार्य का निर्वाह कर सकेंगा। परम पूज्य पिता जी (श्री० पं० कुञ्ज विहारी लाल) ने भी अपनी चिर-संचित काश-रचना की इच्छा प्रकट कर मुझे उत्साहित किया और महती सहायता भी दी। यदि उनकी सहायता और कृपा न होती तो कदाचित् यह कार्य मुक जैसे व्यक्ति के द्वारा सम्पन्न न हो पाता। इसका बहुत बड़ा अंश उनकी हो लेखनी से आया है, हाँ मैंने इसका सम्पादन अपने ही विचार से किया है। इसके प्रकादि के देखने तथा कवियों के उद्धरणादि के एकत्रित करने में मुझे अपने अनुजवर चि० रामचन्द्र शुक्त 'सरस' से बड़ी सहायता मिली है।
यद्यपि इस कार्य के बीच बीच में अनेक बाधायें उपस्थित हुई फिर भी जैसे हो सका वैसे यह कार्य आज इस रूप में समाप्त होकर आप महानुभावों के सम्मुन्द रक्खा गया है। इसके गुण-दोष के विवेचन का सुझे अधिकार नहीं, यह अधिकार सहृदयादा विद्वानों का ही है। में तो यहाँ इसकी केवल कुछ उन विशेषताओं की पोर पाप का ध्यान आकर्षित करता हूँ, जो इस समय के अन्य कोशों में प्रायः नहीं मिलती और जिनको ही लक्ष्य में रख कर इस कोश का संग्रह किया गया है :-- १-इसमें प्राचीन और अर्वाचीन गद्य और पद्य में प्रयुक्त होने वाले ४०००० से
अधिक शब्द संग्रहीत किये गये हैं। यथासाध्य कोई भी उपयोगी और
आवश्यक शब्द छूटने नहीं पाया। २--ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी तथा हिन्दी की अन्य शाखाओं के अति
श्रावश्यक, उपयुक्त और सुप्रयुक्त शब्द, तथा प्रयोग भी समझाये गये हैं । साथ
ही संत-काव्य के विशेष शब्दों और प्रयोगों पर भी प्रकाश डाला गया है। ३–प्रायः सभी आवश्यक और विशेष शब्दों तथा प्रयोगों के उदाहरण भिन्न
भिन्न कवियों तथा लेखकों के ग्रंथों से उद्धत किये गये हैं। ४-प्रायः सभी प्रमुख शब्दों की रचना-विधि और उनके विकास या रूपान्तर
पर भी यथेष्ट प्रकाश डाला गया है। ५-समस्त शब्दों के तत्सम (शुद्ध संस्कृत मूल रूप) देशज और ग्रामीण रूप भी
दे दिये गये हैं और इस प्रकार भाषा-विज्ञान की दृष्टि से शब्दों में रूपान्तर दिखा कर उनके यथेष्ट विकास के दिखाने का भी प्रयत्न किया गया है। -तत्सम शब्दों के प्राकृत और अपभ्रंश-सम्बन्धी रूप भी यथा स्थान दिखला
दिये गये हैं। - ७-स्थान स्थान पर संस्कृत शब्दों के संस्कृत-प्रत्ययादि भी दिखलाये गये हैं।
For Private and Personal Use Only