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याँम
थायी
चोरों, डाकुओं के स्थान आदि का पता देने किय थानो' सूबे०-"चोर पुलिस थाना वाला, जासूस, चोरों का मुखिया। चितै, चित मों जात सुखाय"-मन्ना। थांभ-संज्ञा, पु. दे० (सं० स्तम्भ) थंभ, थानी-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्थानी ) स्थानी,
खम्भा, धूनी, स्तम्भ, थमन्ना (प्रान्ती०)। स्थान का स्वामी, अधिपति, मुखिया, थाँभना-क्रि० स० दे० (सं० स्तम्भन ) प्रधान । वि० संपूर्ण । रोकना, सहारा देना, सहायता करना, थानेदार--संज्ञा, पु० दे० (हि० थाना+फा० विलम्ब करना, थामना (दे०) ।
दार) थाने का अफ़सर, इन्स्पेक्टर । थॉम-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्तम्भ) खम्भा, थानैत --- संज्ञा, पु० दे० (हि० थाना+ऐतस्तम्भ, थूनो, टेक।
प्रत्य०) थानेदार, ग्राम देवता। थांवला-सज्ञा, पु० दे० (सं० स्थल) थाला, थाप-संज्ञा, स्त्री० दे० (सं० स्थापन) थपकी, धालबाल।
थप्पड़, चोट । "लागत थाप मृदङ्ग-मुख-सब्द था-अ० कि० दे० (सं० स्था) रहा, है का रहत भरि पूरि"-केश । प्रतिष्टा, छाप,
भूत काल । विभ० (प्रान्ती०) लिये, वास्ते । धाक, मान, सौगन्ध, प्रमाण । थाई, थायी-वि० दे० (सं० स्थायी) स्थायी, थापन-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्थापन) स्थापन, अटल, ध्रुव । “उगल्यो गाल दूध की थाई' स्थापित करने या बैठाने का कर्म, रखना,
-छत्र० । यो० थाइभाष (का०)। प्रतिष्ठा करना । ' रघुकुल-तिलक सदा तुम थाक-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्था) ग्राम की | उथपन थापन"-जान ।। सीमा, समूह, राशि
थापना--स० कि० दे० (सं० स्थापन) स्थापित थाकना अ० कि० दे० (हि. थकना) थकना, या प्रतिष्ठित करना, धरना, रखना, बैठना । ठहरना, "रथ समेत रवि थाकेउ".-रामा० । "असुर मारि थापहिं सुरन्ह, राखहिं निज थात* वि० दे० (सं० स्थाता) स्थित, ठहरा श्रुति सेतु".-रामा० । संज्ञा, स्त्री० दे० (सं०
स्थापना) स्थापन, प्रतिष्ठा, घट-स्थापना। थाता-संज्ञा, पु० दे० (सं० स्थाता) त्राता, | थापरा-संज्ञा, पु. (देश०) छोटी नाव, रतक, बचाने वाला । "राम विमुख थाता डोंगी, थप्पड़ ।। नहिं कोई"-रामा० ।
थापा- संज्ञा, पु० दे० (हि. थाप) हाथ का थाति-थाती--- संज्ञा स्त्री० दे० (हि. थात) छापा, छापा, ढेर, राशि । धरोहर, अमानत, पंजी, धन । "थाती राखि थापित-वि० दे० (सं० स्थापित) स्थापित, न माँगेउ काऊ'-रामा० ।
प्रतिष्ठित, बैठाया गया। थान-संज्ञा पु० दे० (सं० स्थान) घर, जगह, । थापी-संज्ञा, स्त्री० दे० (हि० थाप) चूने की ठौर, स्थान, ठिकाना, देवस्थान, घुड़साल, गच या कच्चा घड़ा पीटने की मुँगरी। कपड़े गोटे आदि का पूर्ण खंड, संख्या, थाम- संज्ञा, पु० दे० (सं० स्तम्भ) खम्भा, "बड़ो डील लखि पीलको, सबन तज्यो मस्तूल । बन-थान"-भू०।
थामना-- स० क्रि० दे० (सं० स्तंभन) रोकना, थानक-संज्ञा पु० दे० ( हि० थान ) स्थान, । साधना, हाथ में लेना, पकड़ना, सहारा जगह, थाला।
या सहायता देना, सँभालना, अपने ऊपर थाना-संवा पु० दे० (सं० स्थान) बैठने, लेना। टिकने आदि का स्थान, अड्डा. पुलिस की थायी*-वि० दे० ( सं० स्थायिन ) टिकाऊ, चौकी, “नन्द नन्द श्री कृष्ण चन्द गोकुल | दृढ़, स्थायी भाव ।
हुधा।
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